Wednesday, June 11, 2014

नयी क्या है भौर है बस -

नयी क्या है भौर है बस -
इक सुबह ये और है बस .

रात के अंतिम चरण में 
लौ दीये की कांपती है .
भौर की उजली किरण तो 
बस निशा को ढांपती हैं .

भौर होती है तभी तो 
नव उमंगें जागती हैं -
पूरी होंगी या मिटेंगी
लरजती हैं कांपती हैं

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