नयी क्या है भौर है बस -
इक सुबह ये और है बस .
रात के अंतिम चरण में
लौ दीये की कांपती है .
भौर की उजली किरण तो
बस निशा को ढांपती हैं .
भौर होती है तभी तो
नव उमंगें जागती हैं -
पूरी होंगी या मिटेंगी
लरजती हैं कांपती हैं
इक सुबह ये और है बस .
रात के अंतिम चरण में
लौ दीये की कांपती है .
भौर की उजली किरण तो
बस निशा को ढांपती हैं .
भौर होती है तभी तो
नव उमंगें जागती हैं -
पूरी होंगी या मिटेंगी
लरजती हैं कांपती हैं
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