Thursday, May 29, 2014

ये घर तो है घरवालों का .

थोडा सा जोर लगाओ तो 
पड़े सब दरख्त खड़े होंगे . 
अबकी बरखा में यार मेरे 
ये सारे ठूंठ हरे होंगे .

मातम कैसा बरगद टुटा 
जिसकी शाखा पाताली थी . 
अंदर से जर्जर जड़ उसकी 
दीमक ने चटकर डाली थी .

ना झेल सका गिर पड़ा तभी
वो एक हवा का भी झोका
जड़ टूट चुकी थी पर जिसको
शाखों ने रखी संभाली थी .

चल गए फिरंगी घर अपने
ये चमन नहीं कंगालों का .
देसी बिरवे अब रोपेंगे -
घर  होता है घरवालों का .

Tuesday, May 27, 2014

कल किसने देखा कब आया .

सूरजसे चुंधियाती नजरें 
देखें क्या खुलीनहीं आँखें .
चौपट खुलें हैं द्वार अगर .
क्यों खिड़कीसे खुदको झांकें .

जबकल पर थी सारी आशा -
क्यों आज कहूं फिर मेरा था 
रातोंकी दुआ करी हमने -
यूँही बदनाम अँधेरा था .

ये मूल प्रश्न है दुनिया का
जैसे भी टाला जाए टल .
जिसका भी आज अधूरा है
ना जाने कैसी होगी कल .

कुछ करो आज की बात यार
जो मन में है जो मन भाया
जो छूटा फिर ना हाथ लगे -
कल किसने देखा कब आया .

ना कोई गॉड फादर है .

गलत अंदाज़ हो चाहे 
सही जज्बात से देखो .
मुझे जो देखना है तो 
मेरे हालात से देखो .

ना कोई आव आदर है 
हर तरफ ही अनादर है .
हूँ मैं मजदूर का बेटा 
ना कोई गॉड फादर है .

ना बिरला हूँ ना टाटा हूँ
ना अम्बानी ना बाटा हूँ .
कहीं भी ढूंढ लो मुझको
ओनियन हूँ बटाटा हूँ .

ना कोई ब्रांड है अपना -
छुओ ना मैं अछूता हूँ .
बिना दमड़ी बिना चमड़ी
बड़ा लोकल सा जूता हूँ .

मैं देसी आम हूँ यारो
ना कोई काम आमों को .
अगर अपनी पे आ जाऊं
बदल देता निजामो को .

Sunday, May 25, 2014

पहले नालायक का बस्ता देखिये .

काईयों और खाइयों का देश है 
यार थोडा सा संभल कर देखिये . 
टूट हड्डी की बड़ी मुश्किल जुड़े 
नहीं मानो तो फिसल कर देखिये

बदलना गर चाहते हो आसमां -
जरा सा घरसे  निकल कर देखिये . 
छोड़ जग - खुदको बदलकर देखिये 
रास्ता मुश्किल है चलकर देखिये .

रोज़ करता है नमस्ते देखिये .
आदमी सचमुच ये सस्ता देखिये .
वोट देना बादमे मेरे हजुर - 
पहले नालायक का बस्ता देखिये .

Friday, May 23, 2014

मैं तेरे - अंतर का मौन हूँ .

मैं धार्मिक हूँ -
उन्मांदी नहीं 
मंथर चलती हवा हूँ -
आंधी नहीं .
कोई रंग नहीं
पानी सा .
सतरंगी तो 
कभी धानी सा .
विनीत कभी 
अभिमानी सा .
बुद्धू हूँ तो -
कभी ग्यानी सा .
सोच कर देखो - 
मैं कौन हूँ - 
वाचाल सा -
पर मैं तेरे -
अंतर का मौन हूँ .

Tuesday, May 20, 2014

आज स्वदेशी राज हुआ .

सब देसी सब स्वदेशी - क्या अद्भूत आज नज़ारा है 
नए कलेवर में भारत - लगता हम सबको प्यारा है .

नहीं मिली पूरी आज़ादी अंग्रेजों के जाने में - 
पूरे सडसठ साललगे खुदको आज़ाद कराने में .

कैसा अद्भूत दृश्य मनोहर - देखें हम भारतवासी 
फिरसे हम सब एक हुए - चाहे काबा या हो काशी .

मुगल गए अंग्रेज गए गांधी का पूरण काज हुआ 
गाओ मंगलगान देश में आज स्वदेशी राज हुआ .

Tuesday, May 6, 2014

लिखो थोडा गूढ़ .

काका काकी पर कहो -
मित्र खा गए जान .
अम्मा का युग चल रहा
कैसे छेड़ें तान .

ना भैया भाभी कहीं
ना कोई बकरी स्वान
दीदी जीजाजी भले -
बबुआ तू पहचान .

ना मोदी सा है कोई
ना सोनी सी शान
बाबू कजरीवाल की
गयी फ्री में जान .

लल्लू जैसा बावला
नहीं मिलेगा नेक .
बाल ब्रह्मचारी रहूँ
ये है उनकी टेक .

काकी बोली तमक कर
तुम हो पूरे मूढ़ .
सीधा सीधा ना लिखो
लिखो थोडा गूढ़ .

Saturday, May 3, 2014

एक अफलातून सा मैं

एक अफलातून सा मैं 
और ये शातिर ज़माना .
कह रहा हूँ साफ़ तुमसे 
ना हमें तुम अजमाना .

गालियाँ देता नही मैं - 
ना किसी को कोसता हूँ 
चिकनी मिट्टी का घड़ा हूँ .
बूँद भी ना सोखता हूँ .

शब्द मेरे बोलते हैं
भेद सारे खोलते हैं
तेरे दिल का वास्ता हूँ
मंजिलें हूँ रास्ता हूँ -

भावनाओं से भरा हूँ -
धार के संग बह रहा हूँ .
है कोई मुझको संभाले -
हर तरफ से ढह रहा हूँ .

हैं विरोधाभास कितने -
सचके लेकिन पास कितने
आज तुमसे कह रहा हूँ .
सबकी पीड़ा सह रहा हूँ .