Wednesday, December 30, 2015

अब ना कोई हाल पूछे

खट्टी मीठी कुरमुरी सी
स्मृति बिखरी हैं प्यारे
समेटोगे कब इन्हें तुम
बज रहा घड़ियाल पूछे .

क्या भला था क्या बुरा
कैसे हुए कमाल पूछे
उम्रकी चढ़ती कलाकी
रपटती ये ढाल पूछे .

जिंदगी सोना खरा था
चाहे धूरे में पड़ा था
विसंगति की चाल पूछे
क्यों हुए कंगाल पूछे .

कल तक था मैं दुलारा
अब ना कोई हाल पूछे
जा रहा हूँ मैं सदा को
ये पुराना साल पूछे .

Sunday, December 20, 2015

अपनी भी जयबोल जम्हूरे .

बीन किसीकी गीत किसीका
कबतक नाचेंगा फणधर सा .
अपनी लय ना अपना सुर है
कुंडली अपनी खोल जम्हूरे .

कुछ तो लबसे बोल जम्हूरे
पोल सभी की खोल जमूरे .
जिन्दा बाद नहीं ओरों की -
अपनी भी जयबोल जम्हूरे .

फुंफकारों से काम चले ना
विषकी तुझमे कमी नहीं है
शेषनाग पर टिकी धरा है -
विषधर तू  दोमुही नहीं है .

शेर सारे जनाने हो गए

हमें चाहे जितना कोसिये
कहानी में कहाने हो गए .
ना कोई पेच है ना ट्विस्ट है
भाई शाहरुख़ बहाने हो गए .

खबर अखबारकी पढ़ते नहीं
लोग नाहक दीवाने हो गए .
नब्ज अवामकी समझे नहीं
कहाँ मोदी सयाने हो गए.

छुपे बैठे हैं घुसकर मांदमें 
हरे जंगल वीराने हो गए.
जनखे सौ टंच मर्दाने लगे 
शेर सारे जनाने हो गए .

Monday, December 14, 2015

करेंसी नोट सब जाली मिले

बोयें क्या एक भी दाना नहीं
जोतते खेत सब हाली मिले .
भरोसा अब किसी पर है नहीं
संसदी सन्त सब ठाली मिले .

गटर जैसी नदी बहती रही
नहाते लोग बस खाली मिले .
फावड़े ले सभी तो आ गए
न कोई देश में नाली मिले .

एक भी पौद फूलों की नहीं 
चमनमें सब हमें माली मिले .
गुज़ारे क्या करें हम दोस्तों
करेंसी नोट सब जाली मिले .

गया असबाब अब मिलता नहीं
डकैत हमको रखवाली मिले .
चरित मानस पुराणी बात है 
नहीं सुग्रीव सब बाली मिले .

भरोसा अब किसी का क्या करें
मिले जो भी वो मवाली मिले .
मेरी बस अर्ज़ इतनी दोस्तों
करू अच्छा नहीं गाली मिले .

Saturday, December 12, 2015

एक कतरा बूँद से सागर बना रे



चल पड़े हैं कारवां मंजिल पे देखो 

जिन्दगी है खेल कोई अब ना हारे. 
जाने कैसे आगये आँखों में आंसू - 
तूने दिलसे आज जाने क्या कहा रे .

मेघ फिरसे आ गये सागर किनारे 
अश्क आँखों से ना यारा तू बहा रे .
युक्तियों से मुक्तियों की बात झूठी 
एक कतरा बूँद से सागर बना रे .

करना दिलको यार तूभी अनमना रे 
प्यार कविता है ना कोरी कल्पना रे .
मत कहो आकाश में कोहरा घना रे 
छोड़ धरती नभमें अपना घर बना रे .

वो हरदम पास होती है .

हो कितना फासला लेकिन -
वो हरदम पास होती है .
जमानत की वो मेरी -
हर जगह दरखास्त होती है .

खून हैं माफ़ सारे यार 
तुमसे कह नहीं सकता -

हिसाबे इश्क में गलती -
कहाँ बर्दाश्त होती है .

क्षणिकाएं

नफरतों की फसल ही जब काटनी 
प्यार के मैं बीज बोकर क्या करूँ
मैं पथिक अनजान सूनी राह का -
प्रेम में तेरा मैं होकर क्या करूँ .

रोकिये मत राह बढ़कर तुम मेरी - 
जब नहीं मेरे तो रुकके क्या करूँ
क्षितिज के उसपार जाना है मुझे -
तितलियों के पंख लेकर क्या करूँ .

किसीका इंतज़ार अब नहीं
सारी दुनिया बिसार बैठे हैं
जिसे आना है आ जाओ यार
हम तो बाहें पसार बैठे हैं .

हमसफ़र कोई ना सही -
पर सफ़र अच्छा रहा .

उम्र भर सुनते रहे कहा कुछभी नहीं 
कोशिशें की बहूत हुआ कुछभी नहीं .
सफ़र दर सफ़र में रही जिन्दगी यारो -
घुमक्कड़ी खूब रही मिला कुछभी नहीं .

ख्यालो में मस्तीकी धूप आने दो 
शील अश्लील कुछ नहीं जाने दो .

चलो ऐसे सही - 
ना वैसे सही . 
कटे ये जिन्दगी - 
चाहे जैसे सही .

हरेक बात पर ताना - 
हरेक पलका हिसाब 
ना किया इश्क मैंने -
नौकरी कर ली तेरी .

कहूं चाहे ना बतलाऊं - 
मैं लौटूं या नहीं आऊं .
वो मुझको खोज लेती है 
कहीं भी मैं चला जाऊं .

आंधियां सी जो चलती 
पौन है वो .
मुखर सा बोलता सा 
मौन है वो .
जरा सोचो बताओ 
कौन है वो ?

Monday, November 30, 2015

हमतो गलीके देसी कुत्ते हैं जी

एलिशेसन विदेसी नस्ल के नहीं
हम तो गली के देसी कुत्ते हैं जी
आते जाते पर बेवजह भौंकते हैं
लोग डरते भागते चौंकते हैं जी
टुकड़े डाल दो तो दूम हिलाते हैं
वफ़ादारीकी कीमत चुकाते हैं जी
गलीमें पड़े रहते हैं कही नहीं जाते
अजनबी को दूर तक दौड़ते हैं जी

अंगेरजी हमें कुछ खास नहीं आती
सफ़ेद चमड़ी ज्यादा रास नहीं आती
लोगों की हद नहीं हमारी सरहद है
जिसे कभी कभार लांघ जाते हैं जी

गोश्त भी श्रीमान हम देसी खाते हैं जी
भुनगे सी जिंदगी जीते हैं बिताते हैं जी
कभी किसी अखबार चैनेलकी सुर्खी में
कौशिश भी करें तो नहीं आते हैं जी .
जन्म मरण सड़क फुटपाथ पे सरे आम
पब्लिक से कुछभी तो नहीं छिपाते हैं जी
भोजनभट्ट नहीं थोड़े में काम चलाते हैं जी
आम लगते जरूर पर ख़ास कहलाते हैं जी

Tuesday, November 10, 2015

आज मैं हूँ और दिवाली भी है .

जलजला सा उठ रहा चारों तरफ
मूक पीड़ा है बहुत कुछ बोलती .
कोकिला की कूक अबभी है वही
बोल मिश्री से नहीं अब घोलती .

बंध गये असबाब लंबा है सफ़र
मनकी गांठें बांधती है खोलती
बोझ भारी स्मृतियों के दंश हैं
माँ तेरे कमजोर काँधे तोलती .

पीर लिखूं पर कोई पढता नहीं
अर्थ मेरे से कोई गढ़ता नहीं .
पतझरों के दौर बीती बात है
पात दरख्तसे कोई झड़ता नहीं .

लौट आ ये वक्त सवाली भी है
अभी तक दिलमें जगह खाली भी है
कल जाने मैं रहूँ या ना रहूँ -
आज मैं हूँ और दिवाली भी है .

उजाला अब ख़ास होना चाहिए .

भूतिया सा ना लगे ये घर मेरा
कोई अपना पास होना चाहिए .

टूट जाए सांसकी चाहे लड़ी -
मुक्तिका अहसास होना चाहिए .

पंछियों से पंख लेकर क्या करूं
मुक्त पर आकाश होना चाहिए .

दिवाली ऐसे मनाओ दोस्तों
अंधेरों का नाश होना चाहिए .

दीपमाला और कुछ रोशन करो
उजाला अब ख़ास होना चाहिए .

Friday, October 30, 2015

मंजिलों के नाम होंगे .

वक्त समझाएगा सबको
ख़ास ये सब आम होंगे .
आज डंके बज रहें हैं -
कल यही बदनाम होंगे

कल की कैसी फ़िकर है
कल कहीं हम शाम होंगे .
कौन बच पाया यहाँ पर
'काल' सबके धाम होंगे .

नाम में रखा नही कुछ
नाम तो बदनाम होंगे .
मुसाफिर बेनाम हैं हम
मंजिलों के नाम होंगे .

और भी राहें बहुत हैं
और भी आयाम होंगे .
महुब्बत को छोडिये जी
और भी तो काम होंगे .

Tuesday, October 27, 2015

जिन्दगी बोझिल नही कुछ सार होना चाहिए .

जीतने और हारने में कट गयी सारी उम्र -
जिन्दगी बोझिल नही कुछ सार होना चाहिए .
यार हमदम सेंकडों हो जंग हो चाहे अमन .
रार कितनी हो दिलोंमें प्यार होना चाहिए .
पत्थरों के बीच काई जम रही है दोस्तों
सफाई अभियान का प्रसार होना चाहिए .
हूक सी उठती कलेजे में अरि के दोस्तों -
जमके फिरसे मोदी का प्रचार होना चाहिए .
फिर कोई दुश्मन उठाके आँख ना देखे हमें
अब ना दुश्मन से कोई व्यवहार होना चाहिए .
पक्षको कसकर रखे प्रतिपक्ष कुछ ऐसा बने
आम जनता का भी पैरोकार होना चाहिए .
बात में हो दम तवज्जो आपकी चाहूँगा मैं
शब्द में हो धार - ना बेकार होना चाहिए .

Saturday, October 24, 2015

मांगना मत दिल दिया कर ना .

अंधेरों से भी यार - क्या गिला करना .
चांदनी रातों में  - मिल लिया कर ना .

भीड़ में गर लगे अकेला है - तो
तू खुदको कईबार गिन लिया कर ना .

जब किसी बात पर हंसी नहीं आये -
खुद अपने आप पर हंस लिया कर ना .

आसके फूल गमलों में नहीं खिलते
तू बनफूल बनके खिल लिया कर ना.

शर्म की बात माँगना है यार -
मांगना मत दिल दिया कर ना .

Wednesday, October 7, 2015

क्षणिकाएं

ये कैसी जिंदगी प्यारे -
रफु करकर के सब हारे .
जहाँ से सी रहे सारे -
वहीँ से फिर उधडती है .

घटा रुखसार बन छायी रहो महसूस होती हो
बारिशें लौट जाएँ तो हमें अच्छा नही लगता .

कच्चे सब मटके फूट चले 
ना सच चले तब झूठ चले .
जब हक़ नहीं तो लूट चले -
जो बोले उसको कूट चले .

ताले जाने कितने खूटे
माथे जाने कितने फूटे .
साबुत से हाड सभी टूटे .
माया से फिर भी ना छूटे .

महकते सब गुलाब नहीं होते -
शक्श सारे लाजवाब नहीं होते .
जाम आँखों से भी पीये जाते हैं .
मयकश सारे खराब नहीं होते .

मुझे अपनी तन्हाइयों से डर लगता है .
मुझे रूपहली परछाइयों से डर लगता है .
मुझे प्यार की ऊंचाइयों से डर लगता है .
मुझ प्रेम की गहराइयों से डर लगता है .
मुझे खंदकों और खाइयों से डर लगता है .

वंदनमें क्यों कृन्दन सा है .

बाबा बापू की भीड़ बहुत -
क्यों हल्दी ये चंदनसा है .
तुम भी मुस्काते नही प्रभु -
वंदनमें क्यों कृन्दन सा है .

आनन् त्रिपुंड लगाए जो -
कुछ छैल बिहारी बांके हैं .
हाथों में पुस्तक गीता है -
स्वामी के संग संगीता है .

जो माइक पर चिल्लाये हैं
कितने अर्जुन समझाए हैं ?
शिष्याओं की है फौज बड़ी -
लाखों ही शिष्य बनाये हैं .

हानिकी ना गुंजाइश है -
सबसे आसान रवैया है .
संग सजनी अम्मा भैया है
माया लख टक्का सवैया है .

Tuesday, August 11, 2015

नेता भडुए साथ साथ हैं .

करतूतें इन बाबाओं की -
खुली नहीं सचमे जितनी हैं .
बापू आशा राम नहीं इक
राधा मां जाने कितनी हैं .

छिपी हुई हैं खुली हुई कुछ
भैया की भाभी कितनी हैं .
बाबा की बाबी कितनी हैं -
ताले की चाबी कितनी हैं .

भीड़ बहुत है इनके पीछे -
हाथों में हथियार बहुत हैं
पहुंचे हुए फ़रिश्ते भी हैं -
छुट्टे लम्बरदार बहुत हैं .

सिद्धि नहीं हाथ में कोई -
स्वर्ण भार से दबे हाथ हैं
भक्तों की पीड़ा पर भारी -
नेता भडुए साथ साथ हैं .

Monday, July 20, 2015

बीच समन्दर जाना सीखो .


क्या जीवन है इतना छोटा -
काट काट कर सीना है बस .
जीवन हेतु जीना  है बस .
चाक गिरेबां सीना है बस .

क्या सागर मंथन में केवल
शेष नाग को सहना है बस .
अमृत की चाहत में यारो -
जहर हमे ही पीना है बस .

संघर्षों से क्यों कतराते -
संग लहर के क्यों बहते हैं .
मृत्यु के भय से जीते हैं -
क्या इसको जीवन कहते हैं .

धरती पर तो खड़े हुए हो
अम्बर से टकराना सीखो .
अच्छी सीख मिलेगी यारो -
थोडा सा इतराना सीखो .

नौका नयी बनाना सीखो
लहरों से टकराना सीखो .
मोती मुक्ता बहुत मिलेंगे
बीच समन्दर जाना सीखो .

Saturday, July 18, 2015

दिन था या कोहराम गयी है .

अभी अंतरे याद हुए हैं -
गाने के अरमान वही हैं .
उनसे मिलने की चाहत है
दिलका बस पैगाम वही है .

कितना भी समझा लो चाहे
दिलको लेकिन काम वही है .
मुश्किल से उनको भूले हैं -
मगर जुबां पर नाम वही है .

जले कोयले सा दिन गुज़रा
जलती बुझती शाम गयी है .
मुश्किल से बादल छायें हैं -
सुबह नहीं कोहराम गयी है .

Thursday, July 9, 2015

क्षणिकाएं

अगिनत अकूत धनकी खान है 
बाबा बापू की अनूठी शान है .
साष्टांग दंडवत इनको करो -
ये नहीं हैं आदमी भगवान् हैं

सुधा ना दो जहरतो मत घोलिये .
टोकते अब लोग मुंह मत खोलिए .
चुप रहो बेमौत मारे जाओगे -
संग सबके जय इन्हीं की बोलिए .

दुर्गकी दीवार - जैसे नर लगे 
चींटियों से आदमी अनुचर लगे .
फंडसे पाखण्ड यारो देखिये - 
छविभी ना देवसे कमतर लगे .

ठाठ बाठ हैं रईसी शान हूँ .
क्या हुआ थोडा बहुत इंसान हूँ .
जय विजय से गूंजता है आसमां -
भक्त जैसा कुछ नहीं भगवान् हूँ .

वापिसी की ना बची है आस यारो क्या करूँ 
उठ गया भगवानसे विश्वास यारो क्या करूँ .
जो भी था वो सब समर्पित कर दिया -
एक पाई भी बची न पास यारो क्या करूं .


उड़ जाए जो .

लूटा कर सब कुछ बड़ा आज़ाद हूँ -

अब किसी में दम नहीं तडपाये जो .


दूर तक सूने पड़े हैं रास्ते -

है नहीं ऐसा कहीं से आये जो .


वक्त के सारे पखेरू उड़ गये -

हाथमें कुछभी नही उड़ जाए जो .

दुर्ग - सारे ढह गये

घर मकां कुछ भी नहीं 
खुला आकाश है . 
पंछियों की - 
पंक्तियों के पास है .
क्षीण दुर्बल ही सही -
पर आस है .
आज फिरसे -
हम अकेले रह गये
रेत के थे दुर्ग -
सारे ढह गये .

Thursday, June 18, 2015

मत अंगारों से तुम खेलो .

अडवानी हम सच कहते जी
अब ज्यादा मत इतराओ जी  .
रुखी सुखी खा मस्त रहो -
मोदीजी के गुण गाओ जी  .

चिंता में उम्र घटी जाती -
नहीं शीतल होती है छाती
ये भीषण समरकी बेला में
क्यों राजनीति तुमको भाती .

जब छोड़ दिया है सिंघासन
तू भीष्म पिता बनजा प्यारे .
जब अच्छे अच्छे हार गये
पर तेरे शौक अजब न्यारे .

गाओ अब मंगल गीत यार -
मोदी से दीक्षा तुम ले लो . .
जब सबके चौपट भेद खुले
मत अंगारों से तुम खेलो .

क्षणिकाएं

लटकाये पैर कबरमें अपने -

सपनों को सेते रहिये .

शर शैया तेरी सेज भली -

चुपचाप यूँहीं लेटे रहिये .



क्या उखाड़ लिया था 

जो अब उखाड़ लोगो .


अटल - अटल थे प्रभु 


तुम टलो तो अच्छा है .



 

ना सही गीत फ़साना तो है .

अकेला कट नहीं सकता सफ़र 
किसीका अब हमे होना तो है .
नींद आयी ना तुम आये मगर 
हुई जब रात फिर सोना तो है .

बुझा बुझा उदास सा यारो 
इस दिलको हसाना तो है .
महूब्ब्त ना हुई अच्छा हुआ -
ना सही गीत फ़साना तो है .

मैं खुदसे बात कर लेता जरुर -
मौसम कुछ आज सुहाना तो है .
ग़ज़ल वो आज तक लिखी नहीं 
उन्हें फिर लौटकर आना तो है .

खुदा फुर्सत उन्हें बक्शो जरा 
हाले दिल उनको सुनना तो है . 
चले गये तो याद आयेंगे जरुर . 
हमारे बाद ज़माना तो है .

हवाओं को खुला रखिये .

उसे मनाने में अपना जाता क्या है -
क्यों किसीको फिर खफा रखिये .

प्यारकी अर्जी भी पास होगी जरुर -
एक मर्तबा नहीं कई दफा रखिये .

नवाबी नजर पड जाए ना जाने कब
ग़ुरबत में दिल जरा बड़ा रखिये .

जान ले लेते हैं जान कहने वाले
प्यारमें भी यार फासला रखिये .

कौन सा झोका लाये उनका पयाम
बांधिए मत हवाओं को खुला रखिये .

Monday, June 8, 2015

जुर्माना सबका भर देता .

ना रिद्धि ना कोई सिद्धि है .
तू ज्यादा ही कुछ जिद्दी है .
विद्या तो महा अविद्या है .
प्रसिद्धा शतप्रतिशत सिद्धा है

माया साधन है साधक है
वो राधा सब आराधक है
लक्ष्मी की पूजा करो यार
मंदिर पूजा सब बाधक है .

ना दोस्त कहो जी दुश्मन है
ना टस्या है ना मस्या है .
मायापति की वो ही जाने -
माया खुद विकट समस्या है .

माया पाकिटमें होती तो -
जुर्माना सबका भर देता .
जयकारे से जय हो जाती -
जाने कितनों की कर देता .

Sunday, May 24, 2015

लगा सेल पटरी पे हम बेचते हैं .

घरमें बिका कोई रस्ते में यारो
कोई महंगे कोई सस्ते में यारो .
गर देखने की तबियत तुम्हारी
हरेक माल है मेरे बस्ते में यारो .

बिकाऊ सभी हैं खरीदो जो चाहे
भले चाहे अपने या कोई पराये .
कभी थोडा कहीं कम सही पर
जमीरी के उजले कफ़न बेचते हैं .

ये बाबा ये बापू ये अन्ना हजारे
किसे बेचने यारो दिल्ली पधारे .
बिकता नहीं ऊँचे दामों पे उनको
लगा सेल पटरी पे हम बेचते हैं .

मेरा देश घर सब जगत है हमारे .
जिन्हें बेचकर लोग करते गुज़ारे .
जो बिकती नहीं चीज़ चाहें कहींपे
वो नमकीन चीनीको हम बेचते हैं .

बिकाऊ है वोटर है नेता बिकाऊ
अर्थ छोडिये अब शब्द है बिकाऊ .
खरीदो फ़रोख्त इसमें कुछभी नहीं है
बिके माल को फिरसे हम बेचते हैं .

धर्म है बिकाऊ कर्म है बिकाऊ
शर्म का बनाया भरम है बिकाऊ .
बिछा जाल फंदा कोई तो फंसेगा .
खबरदार पढके जो कोई हंसेगा .

Saturday, May 16, 2015

खोदो ना खड्डे गालों में .

अबभी हिरनी सी मस्तानी 
कुछ फर्क नहीं है चालों में 
वैसे ही सुंदर लगती हो -
ज्यों फूल लगे हों डालों में .


नजरोंसे दिलको ठगती हो .
खोवो मत ग़ज़ल रिसालों में.
खा तरस हमारे हालो में -
क्यों हरदम रहो सवालों में .

बीमार रहा इन सालों में -
आशिक हूँ मैं कंगालों में .
ना फूल लगा तू बालों में -
खोदो ना खड्डे गालों में .

Sunday, May 10, 2015

मुक्तक


मैं इतना भी लाचार नहीं - 
करनी कोई मनुहार नहीं .
जो जैसा हूँ वो दिखता हूँ . 
अनमोल बड़ा ना बिकता हूँ
बस दिल की बातें कहता हूँ 
जो मनमें आये लिखता हूँ .


बात तुमसे एक कहनी है मुझे -
मेरे सपनों में भी आता है कोई . 
सामने दिखता नजर आता नहीं -
मैं नहीं लिखता लिखाता है कोई .

रिश्तों के ताने बाने हैं -
अब किसने और निभाने हैं .
पीछे सब हैं उलझे धागे 
चल छोड़ यार चलें आगे .

ना राधासी ना मीरासी 
ना मोतीसी ना हीरासी .
मिली जो ठीक है यारो - 
वो हल्दीसी वो जीरासी .

सफ़रमें ही रहे खोले कहाँ हैं .
अभी असबाब सारे पैक हैं जी . 
बुलावे मौत की चिंता नहीं है -
मुसाफिर हूँ उठे और चल देंगे .

मैं कोई कवि नहीं दोस्त 
ये चंद शब्दों के अंश हैं .
कविता से नहीं लगते -
मात्र कविता के अपभ्रंश हैं .

आज खुद ये कह रहा हूँ 
मैं नदीसा बह रहा हूँ 
हुई तूफानों की छुट्टी - 
अटल तट बन रह रहा हूँ .

मेरी चिंता मत करो प्रिय - 
इस दिलको मैं बहला लूँगा 
पलकों की भूल भूलैया में 
सपना बनके खो सकते हो .
बिगड़ा अबभी कुछ नहीं यार - 
जिसके चाहे हो सकते हो .

http://yatranaama.blogspot.com/

और सब लाचार हैं जी .

बात मैं कुछ बात जैसा
ना जलों की राख जैसा .
धूलि कणसा शुद्र जिससे
बन रहा संसार है जी .

आम मुझसे हैं करोड़ों
ख़ास जैसे चार हैं जी .
फूल हूँ मैं ही चमन का
और सारे खार हैं जी .

जीत जैसा मैं अकेला
और सारे हार हैं जी .
एक बस मैं काम का -
बाकी सभी बेकार हैं जी .

क्या गलत सारा सही है
बात जो मैंने कही है .
मैं नहीं डरता किसीसे
और सब लाचार हैं जी .
http://yatranaama.blogspot.com/
https://www.facebook.com/syashomad

Saturday, May 2, 2015

घरमे दिल बीमार जरुरी है .

मिष्ठानों की बात सही होगी लेकिन संगमें 'खार' जरुरी है .
दुःखका भी उपकार जरुरी है - जीते को भी 'हार' जरुरी है .

फूलों से भी प्यार जरुरी है - काटों का सत्कार जरुरी है .

रावण जैसा गर्व नाहो जाए - नाभि में भी मार जरुरी है .


सोनिया को परिवार जरुरी है - पप्पू की जयकार जरुरी है .
दुश्मनसे भी हाथ मिला लेना - लेकिन करना वार जरुरी है .

कठिनाई को न्योता देना है - इसी लिए सरकार जरुरी है .
नेता बनना सरल नहीं यारो - चमचों की भरमार जरुरी है .

कुशल क्षेम को वो भी आयेंगे- घरमे दिल बीमार जरुरी है .
चाहे जैसे भी हो - हो जाए  करना लेकिन प्यार जरुरी है .

Thursday, March 26, 2015

हर कोई तुझको ठगता है .

बाहर आकर भी देख कभी 
यमुना बदली है नालों में .
बंधकर जाने क्यों रहता है 
इन मंदिर और शिवालों में .

पंडों का धन ईमान प्रभु -
उनको तो चहिए दान प्रभु
तू भी रहता अनजान प्रभु .
है कहाँ तुम्हारा ध्यान प्रभु .

इस भीड़ भाड़ में अब तेरा
दिल जाने कैसे लगता है .
मंदिर में घंटों की ध्वनिसे -
क्यों सोया तू ना जगता है .

ठग विद्या बीती बात सखे
अब रातों को जग जगता है
छलिया सा अब तू नहीं यार
हर कोई तुझको ठगता है .

Monday, March 23, 2015

कुत्ते सारी मलाई चाट गये .

पश्चिमी हवाएं चली ऐसी -
नैतिकता सभी काट गये .

सेर गज पुराने बाट गये -
हमारे शानों गुमाँ ठाठ गये .

एक से हम नजर नहीं आते -
फिरंगी कौम हमको बाँट गये .

खुला क्या रह गया रसोईघर
कुत्ते सारी मलाई चाट गये .

Thursday, March 19, 2015

मैं अभी उड़ान पर हूँ

एक पंछी उड़ रहा है -
जैसे हमसे कह रहा है .
तीर जो कमान पर हूँ
लक्ष्यके संधान पर हूँ .


जय विजय निश्चित नहीं -
बस कर्मके विधान पर हूँ .

क्षितिज को पाना जरुरी -
मैं अभी उड़ान पर हूँ .

Friday, March 13, 2015

हम कौन कहाँ से आये हैं .

हे प्रभु आपने देखो तो
ये भेद बड़े उलझाए हैं .
तू कौन हमारा लगता है -
हम कौन कहाँ से आये हैं .

क्यों हमें अकेले भेजा फिर
क्यों मेरे साथ नहीं आया .
हमको अपने से दूर किया
ठगनी माया में लिपटाया .

पहले माया में रंग डाला -
अब कहते हो ये छोडो सब .
कैसे अब ध्यान करूं तेरा -
कैसे तुझको पा जाऊं रब्ब .

मैं शुद्र अणु बेहद छोटा -
फिर भी है मन में प्रेम बड़ा .
तुझसे मिलने की आस लिए
तेरे मंदिर के द्वार खड़ा .

शाम जायेगी कहाँ पर .

भौर क्या होनी है यारो
घटा छाई आसमां पर .
चिल्ल पौ होने लगी क्यों
दिलके छोटे से बयाँ पर .

पढ़ नहीं पाया ग़ज़ल
यूँ लफ्ज थे मेरी जुबाँ पर
शाम आई है कहाँ से -
शाम जायेगी कहाँ पर .

रातसी होने लगी और -
वो अभी हैं बदगुमाँ पर
खोजता है चाँद - तारे
मर गये जाने कहाँ पर .

बावले से भग रहें हैं -
मंजिलों के कारवाँ पर -
भक्त तो सारे यहीं पर -
आदमी लेकिन कहाँ पर .

Monday, February 23, 2015

प्यार ठंडी आग है गल जाएगा .

जाए तो फिर हम कहाँ जाएँ -
शामको सूरज भी ढल जाएगा .

सूर्य का मत आसरा लेना -
तू दहकती आग में जल जाएगा .

आसमां में रह नहीं सकते -
चाँद तारों को भी खल जाएगा .

प्यार करना ना किसीसे तू -
घरमे प्यारे सब पता चल जाएगा .

पीर हिमनद सी ठिठुरती है -
प्यार ठंडी आग है गल जाएगा .

Wednesday, February 18, 2015

सुहाना सफ़र अब सुहाना नहीं है .

गुज़रते गुज़रते गुज़र ही गयी जी
सुहाना सफ़र अब सुहाना नहीं है .
सड़क के किनारे खड़े होके खाना
अब मक्की के भुट्टोंमें दाना नहीं है .

बढा पेट मैं गोल सा हो गया हूँ -
था सॉलिड अब खोलसा हो गया हूँ
सधे बांस की बांसुरी था कभी मैं
मगर यार अब ढोल सा हो गया हूँ .

वो मस्ती नही वो तराना नही है -
हंसी साथ का अब बहाना नहीं है .
रंगे बाल हँसते हैं सूरत पे मेरी -
नाती कहे ये मेरे - नाना नहीं है .

थे सपने वो कबके सफ़र कर गये हैं
बच्चे हमे - 'बूढों के घर' कर गये हैं
मुश्किल से दिलको मैं बहला रहा हूँ
दिलेनादां ये अपना ज़माना नहीं है .

Wednesday, February 4, 2015

मिलन की रात ना आई .

यूँ भारी भीड़ तो आई मगर 'वो' ख़ास ना आई .
यूँ यारो होश तो आया मगर फिर सांस ना आई .

जमाने की करी परवाह वो हरदम पासना आई .
महूब्ब्त छोडिये जी - दोस्ती भी रास ना आई .

सभी थे फूल कागज़के कहींसे बॉस ना आई
मरू में फूल फल तो छोडिये जी घास ना आई .

अमा की कालिमा से हमने सूरज पोत डाला था
सुनहरी शाम तो आई - मिलन की रात ना आई .

कभी मौसमकी मानिंद हम बदलना सीखना पाए
घटाएं उमड़ कर छाई - मगर बरसात ना आई .

जमाने भर की बातें कह गये अपनी जुबाँ से वो
मगर हमसे महूब्ब्त की तो कोई बात ना आई .

Sunday, February 1, 2015

मैं इन्कलाब बेचता हूँ .

बहूत हो गये जी संभलते नहीं है -
पुराना मैं चुकता हिसाब बेचता हूँ 
ये नेता गवैये और खेलों के भैये .
खरीदो लो - पूरी जमात बेचता हूँ .

खादीकी किस्म खराब बेचता हूँ .
मफ़लर टोपी - जुराब बेचता हूँ .
हर पाँव में फिट आ जाए वो जूता -
चेहरे रूपोश हो वो नकाब बेचता हूँ .

चीज़ ऐसी मैं इक नायाब बेचता हूँ .
गुलामी का जिन्दा सुहाग बेचता हूँ .
देशद्रोहियों को तेज़ जुलाब बेचता हूँ 
बोलो खरीदोगे मैं इन्कलाब बेचता हूँ .