Monday, December 16, 2013

मान रह जाए हमारा -



तेज़ अंधड़ चल रहें हों 
पर ना कोई शाख टूटे .
चाहे पीले पड़ गए हों 
शाख से ना पात छूटे .

रूठ जाए पर खुदा ना 

यार बस ग़मगीन ना हो
चाहे लुट जाए सभी कुछ 
बेज्जती का सीन ना हो .

मान रह जाए हमारा -
धड पे चाहे सर नहीं हो . 
फूल जैसी ना सही पर -
जिन्दगी पत्थर नहीं हो .





Saturday, November 23, 2013

हुई बात बस दो खुदाओं में थी

बचे रह गए वो जो दूर थे 

जो मरे वो सब बेक़सूर थे .

उडी क्या खबर जो हवा में थी 

हुई बात बस दो खुदाओं में थी .


कई रह गए कुछ बह गए

बड़ी तेज़ लहर दुआओं में थी 

जो मरे वो आखिर कौन थे -

जो नवाब थे सभी मौन थे .


जला कारवां जो सफ़र में था

कोई राह में कोई घर में था .

सुना है क्या - कुछ कहा है क्या 

तू ना पूछ मुझसे - हुआ है क्या .

ना ये हराम है ना हलाल है

यही बेकसी है - यहाँ वहां 

रहे जिन्दगी - यही सवाल है .


ना गलत सही की तू बात कर 


ना ये हराम है ना हलाल है .




वही पसरी हुई है दूर तक 


है खुदा कहीं ना कमाल है .


ना रुपया कम ना रियाल है 

वही भूख है वही ख्याल है .




खुली लूट है ना ही छूट है


ना ही नोच है ना खसूट है .


कडा काजियों का है रुख यहाँ 


ये हुकूमत खुद एक सवाल है .

Tuesday, November 19, 2013

निकलते और कुछ पहले




निकलते और कुछ पहले
ये मैले आसमां में तुम -
तो सच मानो कभी उजड़ी
ये फुलवारी नहीं होती .

ना काँटों का सितम होता 
ना कुनबा बेरहम होता .
ये भारत भी चमन होता .
हंसी अपना वतन होता .

नमो नारायण कहना
सीख लेते सब जहाँ वाले
हमारे यार मोदी सा ना -
कोई अहले करम होता .

अब इसको रोकना ना -
टोकना पागल हवाओं तुम .
ये पर्वत सा गुरु होगा -
रुका ना - जो शुरू होगा .

टिके हैं जो बहानो से

छुपे सारे जिनावर अब 

हमें वो खा नहीं सकते 


जो निकला शेर जंगल में - 


सामने आ नहीं सकते .



उगा प्रचंड जो सूरज - 


दुबक बैठे हैं सब तारे .


उन्हें है एक ही चिंता - 


की अब हारे - की अब हारे . 



यही आवाज आती है 


अब दिल्ली के मकानों से 


उड़ादो चील गिद्दों को 


टिके हैं जो बहानो से .


घाटियाँ सुंदर बहूत हैं

घाटियाँ सुंदर बहूत हैं - 

मखमली अहसास भी है 


दूर की वो कल्पना सी - 


आज कितनी पास भी है .


है जुबाँ भी मौन - 


अब किससे कहें ये कौन -


सुंदर तुम हो - 


या फिर घाटियाँ ये .

दिल में तेरा नाम भी हो

ठिठुरती सी रात भी हो 
गर्मजोशी घाम भी हो 
शामके मादक क्षणों में 
दिल में तेरा नाम भी हो .

भीड़ चाहे हो भले ही
इक बराए नाम भी हो .
उनको मेरी हो जरुरत - 
हमको उनसे काम भी हो .

गाँव भी हो शहर भी हो -
प्यार का एक शज़र भी हो
रात तो होती रहेगी -
इक सुहानी सहर भी हो .

एक कतरा ढूंढ लाओ -
प्यार बूंदों में बसा हो .
घन झुके जलझारियों से .
समंदर सी लहर भी हो .

शाम सिंदूरी तुम्हीं हो

शाम सिंदूरी तुम्हीं हो 

चांदनी सी शान भी हो 

प्रेम का अंतिम क्षितिज हो 

खुशबुओं की जान भी हो .



महकती हो स्वांस में तुम 

हवाओं की जान भी हो 

प्राण सी बसती हृदय में 

एक मधुरिम गान भी हो .



पंछियों के गीत जैसी

इक मधुर सी तान भी हो


मंदिरों की घंटियों सी


भौर की अज़ान भी हो .

मुक्तक

दिलसे दिलकी बात - कहना है जरुरी 

बात दिल की रह गयी - देखो अधूरी .

वक्त और हालात से ऐसे जुड़े सब 

कामना दिल की कहाँ - होती हैं पूरी .



कह रहे सब क्या सुनो -

शाम इक ऐसी भी हो जो -

मैं कहूं और तुम सुनो .


लब भले खामोश हैं पर -

आज आँखों में निमंत्रण .


एक चंचल कामिनी सी 

एक जिन्दा पीर सी .

घाव भरता ही नहीं है 

चुभ रही है तीर सी .


नहीं मन में कोई शंशय 
जिधर देखूं तू वहीं है .
तू ही तू तो - सब कहीं हैं 
तू ही तू है - हम नहीं हैं .

नयन उनसे जा लडे हैं 
लडखडा कर हम चलें हैं .
मयकशों को रंज हैं कुछ 
जमीं पर सीधे खड़े हैं .


ना कोई हसरत बची है
टिमटिमा कर दिल बुझा है .
ना कोई अरमान है बस -
जिस्म में कुछ जान है बस .


हम अकिंचन कुछ नहीं
गुणगान तेरा ही रहे बस .
नाम तेरा ही रहे बस -
हम रहें या ना रहें बस .


हर समय तकरार होती
हर घडी उनको मनाते .
आज तुम जो रूठ जाते
हम कसम से छूट जाते .



बहारें आई कसम से
हसरतों की भीड़ मेले .
आज हम भी हैं अकेले
तुम भी आजाओ अकेले .


दोस्त सच्चा है वही - जो 
यार - दुश्मन सा लगे जो .




Tuesday, November 5, 2013

जो उड़ा क्षितिज के पार गया .

जब तैरा बीच समंदर में 
ये पागल मनुआ क्यों डोले .
यूँ दबे पाँव - पदचाप नहीं 
चल मेरे मन होले होले .


क्या कर लेगी बेख़ौफ़ हवा 

सबसे अपना अपनापन है 
ये जीत हार सब व्यर्थ यार 
उड़ना केवल अपना प्रण है .


जो नहीं लड़ा वो हार गया 

हाथों से सब संसार गया .
सब उसको याद करेगे फिर 
जो उड़ा क्षितिज के पार गया .


जो डूब गया सो डूब गया 

जो तैरा उतरा पार गया .
माया का सागर भरा हुआ 
जो नहीं लड़ा वो हार गया .

 

Sunday, October 27, 2013

भक्त भी हूँ - भाव भी है .

भीड़ है भगवान् भी है
आफतों में जान भी है .
दूर बैठा वो कसम से
पंडितों की शान भी है .

मिलन की मुश्किल घडी है
पहुंचना मुश्किल बडी है .
पंडितों के फ़ौज या रब
सब तुझे घेरे पड़ी है .

तू बंधा तो भाव से पर
मांगते हैं भाव ये पर
बंध गया जाने तू कैसे
तू तो मुक्तिकार भी है .

है मेरी अंतिम विनय ये
जो कहीं तू सुन रहा हो .
निकलकर बाहर चला आ
भक्त भी हूँ -  भाव भी है .

Wednesday, October 23, 2013

जिन्दगी

जिन्दगी ख्वाब होता तो टूट जाता कबका
सच थी इसलिए तो अब तलक जिन्दा हूँ .

जिन्दगी मजाक होती तो हंस लिए होते .
जो जाल होती तो कबके फंस लिए होते .

जिन्दगी आज़ादी है - बंधन भी है
लिपटे सांप और गंध चन्दन भी है .

ये मौका जो - अभी तो हाथ में है
जिन्दगी हाथ पकडे मेरे साथ में है .

फिर मिलेगी दुबारा यकीं नहीं होता
कौन जाने फिर  -मिले ना मिले कभी .

Tuesday, October 15, 2013

अंतिम खोल करना चाहता हूँ .


बाज उड़ते हैं गंगन में - नीड चिड़िया के हैं बन में 

आसुरी शक्ति जुटी हैं - पाप के बेहद सृजन में .

कोटि कोटि आखं देखें बाट - आयेंगे कभी रघुनाथ

और पत्थर की अहिल्या विगलित होती है मन में .



आज इस असम धरा को गोल करना चाहता हूँ 

बाद रावण के धरा का - तोल करना चाहता हूँ .

पाप बाकी हैं धरा पर - भार से रत है ये भारत .

आज सबसे मैं ये अंतिम खोल करना चाहता हूँ .







आओ बांचें प्रेम पाती .

चाँद आधा - 

मंद होता - 

दीया बाती . 



मंद शीतल - 

चांदनी मन को 

ना भाती .



फिर पुरानी 

याद के खोलें 

झरोखे - आओ 

बांचें प्रेम पाती .

पुरानी याद - फिर शोले हुए हैं .

पखेरू लौटकर - 

सब आ गए हैं -

हवा ने आज 

'पर' खोले हुए हैं .


बुझी चिंगारियों को - 

छू लिया जो 

पुरानी याद - 

फिर शोले हुए हैं .

मुक्तक

बहूत हंसती थी आँखें - रुलाये जा रहा हूँ मैं .

जो यादोंमें थे - उनको भूलाये जारहा हूँ मैं .


बेवफा के लिए सोच - यार मरना क्या

गये जो भूल - उनको याद करना क्या .


यूँ रही उनसे शिकायत - कब नहीं .

थी कभी उनसे शिकायत अब नहीं .


खुबसूरत थी जहाँ तन्हाईयाँ - 

आज गहरी हैं वहां पर खाइयाँ .


कोई दूर है - गम जिसका पास है

जाने क्यों आज फिर दिल उदास .


जेठमें ठंडी अगन - सावन आग सा लगे .

ख्वाब सच सा लगे - सच ख्वाब सा लगे .


तुमको हक़ है - 

चाहे जैसे संभालो .

मुन्तजिर हूँ - आपका

आकाश सा औढ लो -

धरती सा बिछा लो .


दोस्ती फूलों से - काँटों से करार

बोझ जुल्फों का बहूत होता है यार .


आज दिल फिर - किसी ने ठुकराया .

बेवफा बस तेरा ही नाम याद आया .

मोदी जी अर्जी यही - यही करेगा सूट 
बातों से माने नहीं - मार बनाओ भूत .
उल्टा इनको टांग कर - हंटर मारो सूंत .
लहूना निकले बूँदभी निकले इनका मूत .

आज नहीं तो तडके होंगे .
कार्यकर्त्ता भी भड़के होगें .
जाने दो तुम राहुल भैया -
अब मनमोहन खडके होंगे .

ना बात चली न बात कही 
वो उनके यारो साथ गयी .
कल निकलेगा फिरसे सूरज 
क्या देखें अंधी रात गयी .

छुपके दिल में 
रह रहा है वो कहीं .
ना कहीं भी -
ढूँढने जाना पड़ेगा .
गर पुकारो प्रेम से 
तो दोस्तों .
वो कहीं भी हो - 
उसे आना पड़ेगा .

नियति के पंख हैं और 
फासला कितना यहाँ है .
पंछी उड़ता आसमां में 
घोंसला जाने कहाँ हैं .

सौ सुख और हजारों दुःख हैं 
माने कोई या ना माने .
मरना कौन यहाँ मुश्किल है 
जीना सीख अरे दीवाने .


छोड़कर अब आ गया संसार तेरा 
सच नहींथा झूठथा वो प्यार तेरा .
चाहिए ना फूल अब माली हुआ हूँ 
कल भरा था आजकुछ खाली हुआ हूँ .


जिन्दगी सुंदर बहूत है प्यार कर ले .
जो मिली जैसी भी है स्वीकार कर ले .


बोलते सब लोग - थोडा कम कहें 
मौन हों सब यार तो कुछ हम कहें .





Wednesday, October 2, 2013

जी जाए कुंवर अकेला है .

ना अपना - कोई पराया है 
प्रभु ने भी यही सुनाया है .
लड़ जा अपने जो गैरों से 
गीता में यही बताया है .

राजा है पर प्रजापिता नहीं
पंछी 'पर' हैं - पर उड़ा नहीं 
कागा बोली सब बोल रहे -
हंसों का अतापता नहीं . 

भीक्षा में जो स्वराज मिला
वो कल मिला ना आज मिला
जो मरे जिनावर खाते हैं -
वो ही कव्वे कहलाते हैं .

स्वाधीन हुए - पर सपना है
माना हाकिम भी अपना है .
खाने पीने की हौड बहूत -
जो खालो वो ही अपना है .

सब अंग्रेजी में गाते हैं
छैला बनकर इतराते हैं .
क्या वक्त आगया है यारो
कव्वे भी मोती खाते हैं .

स्वदेशी बात पुरानी है
परदेसी सही निशानी है .
घर महके देसी भोजन से
पर बाहर पिज़्ज़ा खानी हैं .

देसी से हम भी नहीं रहे
चीनी भाई सब कहीं रहें
पूजा के आले से लेकर
हम देसी वाले नहीं रहे .

गाँधी रोता है जन्नत में
आंधी* रोती है मन्नत में .
ये चला चली का मेला है
जी जाए कुंवर अकेला है .

Monday, September 30, 2013

कब नहीं

वहम हो जाए तो 
हम क्या करें .
करी तुमसे महूब्ब्त 
कब नहीं .

तुम्ही तो भूल जाते हो 
अब तुमसे क्या कहें 
करी हमने शिकायत 
कब नहीं .

अब नहीं

अकेले चल रहें
संग रास्ते .
बहूत थे साथ -
लेकिन अब नहीं .

कटी तन्हाइयों में
जिन्दगी .
मगर उनसे
शिकायत अब नहीं .

प्यार गर खेल है
तो क्या हुआ .
बहूत बेमेल है
तो क्या हुआ .

हौसला है तो
लड़कर जीत लो -
मुक्कदर से -
शिकायत अब नहीं .