Thursday, May 26, 2016

क्या मुस्कुराना छोड़ दें

समंदर माने विनय ना
खुद गवाह श्री  रामजी 
खार दम्भी  दिलको तू 
मीठा बनाना छोड़ दे .

बाँध मत धारे नदीके -
नीर मीठा दें तुझे 
बह रहे दरिया के तू 
स्वछन्द मुहाने छोड़  दे .

जंग निश्चित सामने 
कायर बनो ना पार्थ तुम 
आज झूठे अमन के 
लच्चर बहाने छोड़ दे .

बदल जाता है समय 
जब ठोकरें मारे कोई 
मुसीबत जो आ पड़ी 
क्या मुस्कुराना छोड़ दें   

Tuesday, May 24, 2016

रस्ते से हट गया हूँ .

अब नहीं भारी कसम से
और थोडा छट गया हूँ .
पर्वतारोही नहीं पर
मैं पहाडा रट गया हूँ .

कल मैं सम्पूर्ण था पर
आज थोडा घट गया हूँ .
हूँ जरा नमकीन सा पर
चाटने से चट गया हूँ .

बांटने से बंट गया हूँ .
काटने से कट गया हूँ .
आईने जैसा नहीं पर
रास्ते से हट गया हूँ .