समंदर माने विनय ना
खुद गवाह श्री रामजी
खार दम्भी दिलको तू
मीठा बनाना छोड़ दे .
बाँध मत धारे नदीके -
नीर मीठा दें तुझे
बह रहे दरिया के तू
स्वछन्द मुहाने छोड़ दे .
जंग निश्चित सामने
कायर बनो ना पार्थ तुम
आज झूठे अमन के
लच्चर बहाने छोड़ दे .
बदल जाता है समय
जब ठोकरें मारे कोई
मुसीबत जो आ पड़ी
क्या मुस्कुराना छोड़ दें