यूँ ही
Sunday, December 17, 2017
अनपढ़ी सी इक कहानी हूँ
अनपढ़ी सी इक कहानी हूँ
याद दुनियाको मुह्ज़ुबानी हूँ
जुबांसे कुछ भी कह नहीं पाई
न कोई लोमड़ी सयानी हूँ
किसीकी निगाह में हूँ और
किसीकी निगहबानी हूँ
करो ना याद आजाउंगी मैं
तेरे दिलकी अमिट निशानी हूँ
Friday, December 8, 2017
हे धर्मराज अभी तुम दूसरा कोई घर देखो
थामने हैं कई हाथ
कई जाने अभी बचानी हैं
किसीकी सिंदूर की डिब्बी
खोयी उसे पहुचानी है
कई किश्तियाँ चली थी
जो लौट अभी आनी हैं
बहूत सी उलझने बाकी
जो मुझे सुलझानी हैं
बहूत सी ग़ज़ल बाकी
जो जमाने को सुनानी हैं
कई अनकहे अफ़साने
कई पुरानी कहानी हैं
बहुत से वायदे अधूरे हैं
भरने हैं कई घाव -
कुछ तो पूर्ति कर दूं
जो अभी आधे अधूरे हैं
यहाँ मरने की फुर्सत कहाँ
कोई दूसरा नगर देखो
हे धर्मराज अभी तुम
दूसरा कोई घर देखो
Friday, December 1, 2017
मैं रूखी रोटी खाता हूँ
लिखने से रोटी चलती है
लिखने पे गाली खाता हूँ
मैं भक्त नहीं हूँ मोदी का
ये आज तुम्हें बतलाता हूँ
अब मेरी छोड़ कहो अपनी
क्यों भौंक रहे पट्टा पहने
न कज़री जैसी बात करू
ना सोनी सा इतराता हूँ
माया ममता पप्पू लालू
मैं सबपे कलम चलाता हूँ
सरहद न खींची है कोई
बेधड़क कहीं भी जाता हूँ
मैं दिलकी बाते करता हूँ
मैं दिलसे तुम्हे सुनाता हूँ
अपनी तो छोटी हस्ती है
मैं रूखी रोटी खाता हूँ
मैं लिखके बातें करता हूँ
मन ही मन में गुर्राता हूँ
मीठी पुड़िया से काम चले
तो सुईं नहीं लगाता हूँ
Wednesday, November 29, 2017
उम्र बाकी बची थोड़ी
उम्र बाकी बची थोड़ी
बहुतसे काम करने हैं
बचे जो चंद सपने हैं
जहाँ के नाम करने हैं .
बड़ी उजाड़ बस्ती है -
यहाँ उजड़े बसाने हैं
गये कुछ रूठके मुझसे
उन्हें वापिस बुलाने हैं .
बहूत से बीज बोने हैं
नए गुलशन सजाने हैं
किसीकी आँखके आंसू
पिरो माला बनाने हैं
कई सूनी निगाहों में
नए सपने जगाने हैं
बहुत सी बात करनी हैं
किये वादे निभाने हैं .
मिले खुदसे हुआ अरसा
यहाँ मिलने मिलाने में
झोपड़े फूंक कर अपने
प्रभुके घर भी जाने हैं .
Friday, November 10, 2017
बेकार जैसा भी नहीं हूँ
सहज जैसा भी नहीं
दुश्वार जैसा भी नहीं हूँ
रंजिशों में भी नहीं पर
प्यार जैसा भी नहीं हूँ
कर रहा हूँ प्यार पर
इकरार जैसा भी नहीं हूँ
शहद जैसा भी नहीं पर
खार जैसा भी नहीं हूँ
आप जैसा भी नहीं
संसार जैसा भी नहीं हूँ
आजमा के देख लो
व्यवहार जैसा भी नहीं हूँ
रूठता भी मैं नहीं
मनुहार जैसा भी नहीं हूँ
सार जैसा कुछ नहीं -
बेकार जैसा भी नहीं हूँ
Friday, January 13, 2017
रुका आँखों का पानी है
तुम्हारी बात सुननी है
व्यथा अपनी सुनानी है
ख़त्म होती नहीं यारो
बड़ी अनबुझ पहली है
बड़ी अद्भूत कहानी है
बड़ी रोई है छिपछिपके
मेरी ये जिंदगानी है
बहाये नीर जीवन भर
बड़ी खामोश ये आँखें
अभी तो मुस्कुरानी है
दिलासा देने आये हो
अभी कुछ देर तो ठहरो
अभी तो रात बाकी है
बड़ी मुश्किल से सुखा है
रुका आँखों का पानी है
Friday, January 6, 2017
धूपमे छाया हुआ हूँ
मूलधन उतरा नहीं जी
ब्याज में आया हुआ हूँ .
चौंच तोते की लगी है -
फल पका खाया हुआ हूँ .
नकद जैसा कुछ नहीं जी -
किश्त पर लाया हुआ हूँ .
दूर भी करते नहीं हैं -
नाही अपनाया हुआ हूँ .
जिन्दगी लूट सी गयी है
मौत का साया हुआ हूँ .
मैं दिहाड़ी पर नहीं हूँ
सेलरी पाया हुआ हूँ .
सुलझता ऐसा नहीं जी
त्रिगुणी माया हुआ हूँ .
शीत में कोहरा घना हूँ
धूप में छाया हुआ हूँ .
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