Monday, July 20, 2015

बीच समन्दर जाना सीखो .


क्या जीवन है इतना छोटा -
काट काट कर सीना है बस .
जीवन हेतु जीना  है बस .
चाक गिरेबां सीना है बस .

क्या सागर मंथन में केवल
शेष नाग को सहना है बस .
अमृत की चाहत में यारो -
जहर हमे ही पीना है बस .

संघर्षों से क्यों कतराते -
संग लहर के क्यों बहते हैं .
मृत्यु के भय से जीते हैं -
क्या इसको जीवन कहते हैं .

धरती पर तो खड़े हुए हो
अम्बर से टकराना सीखो .
अच्छी सीख मिलेगी यारो -
थोडा सा इतराना सीखो .

नौका नयी बनाना सीखो
लहरों से टकराना सीखो .
मोती मुक्ता बहुत मिलेंगे
बीच समन्दर जाना सीखो .

Saturday, July 18, 2015

दिन था या कोहराम गयी है .

अभी अंतरे याद हुए हैं -
गाने के अरमान वही हैं .
उनसे मिलने की चाहत है
दिलका बस पैगाम वही है .

कितना भी समझा लो चाहे
दिलको लेकिन काम वही है .
मुश्किल से उनको भूले हैं -
मगर जुबां पर नाम वही है .

जले कोयले सा दिन गुज़रा
जलती बुझती शाम गयी है .
मुश्किल से बादल छायें हैं -
सुबह नहीं कोहराम गयी है .

Thursday, July 9, 2015

क्षणिकाएं

अगिनत अकूत धनकी खान है 
बाबा बापू की अनूठी शान है .
साष्टांग दंडवत इनको करो -
ये नहीं हैं आदमी भगवान् हैं

सुधा ना दो जहरतो मत घोलिये .
टोकते अब लोग मुंह मत खोलिए .
चुप रहो बेमौत मारे जाओगे -
संग सबके जय इन्हीं की बोलिए .

दुर्गकी दीवार - जैसे नर लगे 
चींटियों से आदमी अनुचर लगे .
फंडसे पाखण्ड यारो देखिये - 
छविभी ना देवसे कमतर लगे .

ठाठ बाठ हैं रईसी शान हूँ .
क्या हुआ थोडा बहुत इंसान हूँ .
जय विजय से गूंजता है आसमां -
भक्त जैसा कुछ नहीं भगवान् हूँ .

वापिसी की ना बची है आस यारो क्या करूँ 
उठ गया भगवानसे विश्वास यारो क्या करूँ .
जो भी था वो सब समर्पित कर दिया -
एक पाई भी बची न पास यारो क्या करूं .


उड़ जाए जो .

लूटा कर सब कुछ बड़ा आज़ाद हूँ -

अब किसी में दम नहीं तडपाये जो .


दूर तक सूने पड़े हैं रास्ते -

है नहीं ऐसा कहीं से आये जो .


वक्त के सारे पखेरू उड़ गये -

हाथमें कुछभी नही उड़ जाए जो .

दुर्ग - सारे ढह गये

घर मकां कुछ भी नहीं 
खुला आकाश है . 
पंछियों की - 
पंक्तियों के पास है .
क्षीण दुर्बल ही सही -
पर आस है .
आज फिरसे -
हम अकेले रह गये
रेत के थे दुर्ग -
सारे ढह गये .