Monday, November 30, 2015

हमतो गलीके देसी कुत्ते हैं जी

एलिशेसन विदेसी नस्ल के नहीं
हम तो गली के देसी कुत्ते हैं जी
आते जाते पर बेवजह भौंकते हैं
लोग डरते भागते चौंकते हैं जी
टुकड़े डाल दो तो दूम हिलाते हैं
वफ़ादारीकी कीमत चुकाते हैं जी
गलीमें पड़े रहते हैं कही नहीं जाते
अजनबी को दूर तक दौड़ते हैं जी

अंगेरजी हमें कुछ खास नहीं आती
सफ़ेद चमड़ी ज्यादा रास नहीं आती
लोगों की हद नहीं हमारी सरहद है
जिसे कभी कभार लांघ जाते हैं जी

गोश्त भी श्रीमान हम देसी खाते हैं जी
भुनगे सी जिंदगी जीते हैं बिताते हैं जी
कभी किसी अखबार चैनेलकी सुर्खी में
कौशिश भी करें तो नहीं आते हैं जी .
जन्म मरण सड़क फुटपाथ पे सरे आम
पब्लिक से कुछभी तो नहीं छिपाते हैं जी
भोजनभट्ट नहीं थोड़े में काम चलाते हैं जी
आम लगते जरूर पर ख़ास कहलाते हैं जी

Tuesday, November 10, 2015

आज मैं हूँ और दिवाली भी है .

जलजला सा उठ रहा चारों तरफ
मूक पीड़ा है बहुत कुछ बोलती .
कोकिला की कूक अबभी है वही
बोल मिश्री से नहीं अब घोलती .

बंध गये असबाब लंबा है सफ़र
मनकी गांठें बांधती है खोलती
बोझ भारी स्मृतियों के दंश हैं
माँ तेरे कमजोर काँधे तोलती .

पीर लिखूं पर कोई पढता नहीं
अर्थ मेरे से कोई गढ़ता नहीं .
पतझरों के दौर बीती बात है
पात दरख्तसे कोई झड़ता नहीं .

लौट आ ये वक्त सवाली भी है
अभी तक दिलमें जगह खाली भी है
कल जाने मैं रहूँ या ना रहूँ -
आज मैं हूँ और दिवाली भी है .

उजाला अब ख़ास होना चाहिए .

भूतिया सा ना लगे ये घर मेरा
कोई अपना पास होना चाहिए .

टूट जाए सांसकी चाहे लड़ी -
मुक्तिका अहसास होना चाहिए .

पंछियों से पंख लेकर क्या करूं
मुक्त पर आकाश होना चाहिए .

दिवाली ऐसे मनाओ दोस्तों
अंधेरों का नाश होना चाहिए .

दीपमाला और कुछ रोशन करो
उजाला अब ख़ास होना चाहिए .