Saturday, November 23, 2013

हुई बात बस दो खुदाओं में थी

बचे रह गए वो जो दूर थे 

जो मरे वो सब बेक़सूर थे .

उडी क्या खबर जो हवा में थी 

हुई बात बस दो खुदाओं में थी .


कई रह गए कुछ बह गए

बड़ी तेज़ लहर दुआओं में थी 

जो मरे वो आखिर कौन थे -

जो नवाब थे सभी मौन थे .


जला कारवां जो सफ़र में था

कोई राह में कोई घर में था .

सुना है क्या - कुछ कहा है क्या 

तू ना पूछ मुझसे - हुआ है क्या .

ना ये हराम है ना हलाल है

यही बेकसी है - यहाँ वहां 

रहे जिन्दगी - यही सवाल है .


ना गलत सही की तू बात कर 


ना ये हराम है ना हलाल है .




वही पसरी हुई है दूर तक 


है खुदा कहीं ना कमाल है .


ना रुपया कम ना रियाल है 

वही भूख है वही ख्याल है .




खुली लूट है ना ही छूट है


ना ही नोच है ना खसूट है .


कडा काजियों का है रुख यहाँ 


ये हुकूमत खुद एक सवाल है .

Tuesday, November 19, 2013

निकलते और कुछ पहले




निकलते और कुछ पहले
ये मैले आसमां में तुम -
तो सच मानो कभी उजड़ी
ये फुलवारी नहीं होती .

ना काँटों का सितम होता 
ना कुनबा बेरहम होता .
ये भारत भी चमन होता .
हंसी अपना वतन होता .

नमो नारायण कहना
सीख लेते सब जहाँ वाले
हमारे यार मोदी सा ना -
कोई अहले करम होता .

अब इसको रोकना ना -
टोकना पागल हवाओं तुम .
ये पर्वत सा गुरु होगा -
रुका ना - जो शुरू होगा .

टिके हैं जो बहानो से

छुपे सारे जिनावर अब 

हमें वो खा नहीं सकते 


जो निकला शेर जंगल में - 


सामने आ नहीं सकते .



उगा प्रचंड जो सूरज - 


दुबक बैठे हैं सब तारे .


उन्हें है एक ही चिंता - 


की अब हारे - की अब हारे . 



यही आवाज आती है 


अब दिल्ली के मकानों से 


उड़ादो चील गिद्दों को 


टिके हैं जो बहानो से .


घाटियाँ सुंदर बहूत हैं

घाटियाँ सुंदर बहूत हैं - 

मखमली अहसास भी है 


दूर की वो कल्पना सी - 


आज कितनी पास भी है .


है जुबाँ भी मौन - 


अब किससे कहें ये कौन -


सुंदर तुम हो - 


या फिर घाटियाँ ये .

दिल में तेरा नाम भी हो

ठिठुरती सी रात भी हो 
गर्मजोशी घाम भी हो 
शामके मादक क्षणों में 
दिल में तेरा नाम भी हो .

भीड़ चाहे हो भले ही
इक बराए नाम भी हो .
उनको मेरी हो जरुरत - 
हमको उनसे काम भी हो .

गाँव भी हो शहर भी हो -
प्यार का एक शज़र भी हो
रात तो होती रहेगी -
इक सुहानी सहर भी हो .

एक कतरा ढूंढ लाओ -
प्यार बूंदों में बसा हो .
घन झुके जलझारियों से .
समंदर सी लहर भी हो .

शाम सिंदूरी तुम्हीं हो

शाम सिंदूरी तुम्हीं हो 

चांदनी सी शान भी हो 

प्रेम का अंतिम क्षितिज हो 

खुशबुओं की जान भी हो .



महकती हो स्वांस में तुम 

हवाओं की जान भी हो 

प्राण सी बसती हृदय में 

एक मधुरिम गान भी हो .



पंछियों के गीत जैसी

इक मधुर सी तान भी हो


मंदिरों की घंटियों सी


भौर की अज़ान भी हो .

मुक्तक

दिलसे दिलकी बात - कहना है जरुरी 

बात दिल की रह गयी - देखो अधूरी .

वक्त और हालात से ऐसे जुड़े सब 

कामना दिल की कहाँ - होती हैं पूरी .



कह रहे सब क्या सुनो -

शाम इक ऐसी भी हो जो -

मैं कहूं और तुम सुनो .


लब भले खामोश हैं पर -

आज आँखों में निमंत्रण .


एक चंचल कामिनी सी 

एक जिन्दा पीर सी .

घाव भरता ही नहीं है 

चुभ रही है तीर सी .


नहीं मन में कोई शंशय 
जिधर देखूं तू वहीं है .
तू ही तू तो - सब कहीं हैं 
तू ही तू है - हम नहीं हैं .

नयन उनसे जा लडे हैं 
लडखडा कर हम चलें हैं .
मयकशों को रंज हैं कुछ 
जमीं पर सीधे खड़े हैं .


ना कोई हसरत बची है
टिमटिमा कर दिल बुझा है .
ना कोई अरमान है बस -
जिस्म में कुछ जान है बस .


हम अकिंचन कुछ नहीं
गुणगान तेरा ही रहे बस .
नाम तेरा ही रहे बस -
हम रहें या ना रहें बस .


हर समय तकरार होती
हर घडी उनको मनाते .
आज तुम जो रूठ जाते
हम कसम से छूट जाते .



बहारें आई कसम से
हसरतों की भीड़ मेले .
आज हम भी हैं अकेले
तुम भी आजाओ अकेले .


दोस्त सच्चा है वही - जो 
यार - दुश्मन सा लगे जो .




Tuesday, November 5, 2013

जो उड़ा क्षितिज के पार गया .

जब तैरा बीच समंदर में 
ये पागल मनुआ क्यों डोले .
यूँ दबे पाँव - पदचाप नहीं 
चल मेरे मन होले होले .


क्या कर लेगी बेख़ौफ़ हवा 

सबसे अपना अपनापन है 
ये जीत हार सब व्यर्थ यार 
उड़ना केवल अपना प्रण है .


जो नहीं लड़ा वो हार गया 

हाथों से सब संसार गया .
सब उसको याद करेगे फिर 
जो उड़ा क्षितिज के पार गया .


जो डूब गया सो डूब गया 

जो तैरा उतरा पार गया .
माया का सागर भरा हुआ 
जो नहीं लड़ा वो हार गया .