Tuesday, November 5, 2013

जो उड़ा क्षितिज के पार गया .

जब तैरा बीच समंदर में 
ये पागल मनुआ क्यों डोले .
यूँ दबे पाँव - पदचाप नहीं 
चल मेरे मन होले होले .


क्या कर लेगी बेख़ौफ़ हवा 

सबसे अपना अपनापन है 
ये जीत हार सब व्यर्थ यार 
उड़ना केवल अपना प्रण है .


जो नहीं लड़ा वो हार गया 

हाथों से सब संसार गया .
सब उसको याद करेगे फिर 
जो उड़ा क्षितिज के पार गया .


जो डूब गया सो डूब गया 

जो तैरा उतरा पार गया .
माया का सागर भरा हुआ 
जो नहीं लड़ा वो हार गया .

 

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