Sunday, April 26, 2020

इंसान खिलौना है

जब ख्वाब नही कोई
फिर कैसे नींद आये
ये कैसी रात यारो
ये कैसा बिछौना है
घरसे निकलके सारे
बाज़ार आ गए हैं
रमज़ान का मौका है
बदमाश कोरोना है
हिम्मत से सच लिखा है
कुछ झूठ नही यारो
कहने को कह गया हूँ
पर सच घिनोना है
परिचय नही किसीसे
अनजान सा शहर है
निकला ही क्यों सफ़र में
इस बात का रोना है
अनमोल बहुत थी ये
ना खेल था ये जीवन
बच्चा सा एक खुदा है
इंसान खिलौना है

अच्छों का अभाव बहूत हैं

लिखने का यूँ चाव बहूत है
अक्षर थोड़े भाव बहूत हैं
चुप रहना अब बड़ा कठिन है
दुनिया देती घाव बहूत है
सच्ची बात खरी कहता हूँ
कडुआ जो स्वभाव बहूत है
फसली नेता चीख रहें हैं
इनका कहाँ प्रभाव बहूत है
दो नम्बर में बरकत है जी
खतरे कमती आय बहूत है
जीना यारो कहाँ कठिन है
मानो मेरी राय बहूत है
खड़े किनारे सोच रहे हो
चल दो यारो नाव बहूत हैं
जीत बड़ी मुस्किल से होगी
हारेगें कैसे दाव बहूत है
या मौला मिल जाए फिरसे
लेकिन ये असहाय बहूत है
जीजा जीजी भैया अम्मा
सिंघासन का चाव बहूत है
यहाँ खिलाड़ी मौज ले रहे
भांडों का प्रसार बहूत है
बापू बाबा खूब सारे हैं
माया का प्रचार बहूत
देश तरक्की कर जाए पर
मोदीजी समभाव बहुत हैं
बुरे थोक में मिल जायेंगे
अच्छों का अभाव बहूत हैं