Sunday, April 26, 2020

इंसान खिलौना है

जब ख्वाब नही कोई
फिर कैसे नींद आये
ये कैसी रात यारो
ये कैसा बिछौना है
घरसे निकलके सारे
बाज़ार आ गए हैं
रमज़ान का मौका है
बदमाश कोरोना है
हिम्मत से सच लिखा है
कुछ झूठ नही यारो
कहने को कह गया हूँ
पर सच घिनोना है
परिचय नही किसीसे
अनजान सा शहर है
निकला ही क्यों सफ़र में
इस बात का रोना है
अनमोल बहुत थी ये
ना खेल था ये जीवन
बच्चा सा एक खुदा है
इंसान खिलौना है

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