Wednesday, November 29, 2017

उम्र बाकी बची थोड़ी

उम्र बाकी बची थोड़ी
बहुतसे काम करने हैं
बचे जो चंद सपने हैं
जहाँ के नाम करने हैं .

बड़ी उजाड़ बस्ती है -
यहाँ उजड़े बसाने हैं
गये कुछ रूठके मुझसे
उन्हें वापिस बुलाने हैं .

बहूत से बीज बोने हैं
नए गुलशन सजाने हैं
किसीकी आँखके आंसू
पिरो माला बनाने हैं

कई सूनी निगाहों में
नए सपने जगाने हैं
बहुत सी बात करनी हैं
किये वादे निभाने हैं .

मिले खुदसे हुआ अरसा
यहाँ मिलने मिलाने में
झोपड़े फूंक कर अपने
प्रभुके घर भी जाने हैं .

Friday, November 10, 2017

बेकार जैसा भी नहीं हूँ

सहज जैसा भी नहीं
दुश्वार जैसा भी नहीं हूँ
रंजिशों में भी नहीं पर 
प्यार जैसा भी नहीं हूँ

कर रहा हूँ प्यार पर
इकरार जैसा भी नहीं हूँ
शहद जैसा भी नहीं पर
खार जैसा भी नहीं हूँ 

आप जैसा भी नहीं
संसार जैसा भी नहीं हूँ
आजमा के देख लो
व्यवहार जैसा भी नहीं हूँ

रूठता भी मैं नहीं
मनुहार जैसा भी नहीं हूँ
सार जैसा कुछ नहीं -
बेकार जैसा भी नहीं हूँ