Thursday, March 26, 2015

हर कोई तुझको ठगता है .

बाहर आकर भी देख कभी 
यमुना बदली है नालों में .
बंधकर जाने क्यों रहता है 
इन मंदिर और शिवालों में .

पंडों का धन ईमान प्रभु -
उनको तो चहिए दान प्रभु
तू भी रहता अनजान प्रभु .
है कहाँ तुम्हारा ध्यान प्रभु .

इस भीड़ भाड़ में अब तेरा
दिल जाने कैसे लगता है .
मंदिर में घंटों की ध्वनिसे -
क्यों सोया तू ना जगता है .

ठग विद्या बीती बात सखे
अब रातों को जग जगता है
छलिया सा अब तू नहीं यार
हर कोई तुझको ठगता है .

Monday, March 23, 2015

कुत्ते सारी मलाई चाट गये .

पश्चिमी हवाएं चली ऐसी -
नैतिकता सभी काट गये .

सेर गज पुराने बाट गये -
हमारे शानों गुमाँ ठाठ गये .

एक से हम नजर नहीं आते -
फिरंगी कौम हमको बाँट गये .

खुला क्या रह गया रसोईघर
कुत्ते सारी मलाई चाट गये .

Thursday, March 19, 2015

मैं अभी उड़ान पर हूँ

एक पंछी उड़ रहा है -
जैसे हमसे कह रहा है .
तीर जो कमान पर हूँ
लक्ष्यके संधान पर हूँ .


जय विजय निश्चित नहीं -
बस कर्मके विधान पर हूँ .

क्षितिज को पाना जरुरी -
मैं अभी उड़ान पर हूँ .

Friday, March 13, 2015

हम कौन कहाँ से आये हैं .

हे प्रभु आपने देखो तो
ये भेद बड़े उलझाए हैं .
तू कौन हमारा लगता है -
हम कौन कहाँ से आये हैं .

क्यों हमें अकेले भेजा फिर
क्यों मेरे साथ नहीं आया .
हमको अपने से दूर किया
ठगनी माया में लिपटाया .

पहले माया में रंग डाला -
अब कहते हो ये छोडो सब .
कैसे अब ध्यान करूं तेरा -
कैसे तुझको पा जाऊं रब्ब .

मैं शुद्र अणु बेहद छोटा -
फिर भी है मन में प्रेम बड़ा .
तुझसे मिलने की आस लिए
तेरे मंदिर के द्वार खड़ा .

शाम जायेगी कहाँ पर .

भौर क्या होनी है यारो
घटा छाई आसमां पर .
चिल्ल पौ होने लगी क्यों
दिलके छोटे से बयाँ पर .

पढ़ नहीं पाया ग़ज़ल
यूँ लफ्ज थे मेरी जुबाँ पर
शाम आई है कहाँ से -
शाम जायेगी कहाँ पर .

रातसी होने लगी और -
वो अभी हैं बदगुमाँ पर
खोजता है चाँद - तारे
मर गये जाने कहाँ पर .

बावले से भग रहें हैं -
मंजिलों के कारवाँ पर -
भक्त तो सारे यहीं पर -
आदमी लेकिन कहाँ पर .