Monday, June 30, 2014

तुम प्रलयके गीत गाओ

तुम प्रलयके गीत गाओ 
अब नहीं मनुहार होगी .
पांडवों की जीत होगी 
कौरवों की हार होगी .

मने कोई रूठ जाए .
साथ हो या छुट जाए . 
जिस्म मिट्टीका बना है 
लात मारो टूट जाए . 

बांस जैसी लचक छोडो
अब मुझे झुकना नहीं है .
रास्ते कितने कठिन हों
पर मुझे रुकना नहीं है .

Wednesday, June 25, 2014

जमूरे - सरकार किस की हमारी या 'आप' की .

जमूरे - 
सरकार किस की 
हमारी या 'आप' की .

या अपने खुदाई - 
माई बाप की .
पुण्यकी या पाप की 
जो ना माने - 
उसकी और 
उसके बाप की .

ये 'आप' नामका
संताप कौन हैं
किसी ने कभी
सुना नहीं .
हजूर अक्सर धरने पर
धरा रहता है .
तम्बू ढह जाए तब भी
अकेला खड़ा रहता है .

ये पुराने चावल -
परदेसी हैं की -
देश में उगाये गए हैं
पता नहीं - पर
बीज इम्पोर्टेड हैं -
इटली से बरसों पहले
मंगाए गए हैं .

ये कौन है -
जो तस्वीर के
पीछे मौन है .
ये मौनी नहीं -
मोदी है .
सब कहते हैं -
इसने ही कांग्रेस
की कब्र खोदी है .

रेल अपने आप
चलती है - या
चलाई जाती है .
बस्तियां उजाड़ कर -
फिर बसाई जाती हैं .

हजूर - हिसाब में
जरा कच्चा हूँ -
वैसे सीधा सच्चा हूँ
वोट देता नहीं -
अभी बच्चा हूँ .

Tuesday, June 24, 2014

पर तुम्हारा ख़ास हूँ जी

गुदगुदाए याद जिसकी -
हृदय का उल्लास हूँ जी .
दूर मीलों हैं ठिकाना -
पर तुम्हारे पास हूँ जी .

पुन्य हूँ ना पाप हूँ जी .
न कोई संताप हूँ जी . 
क्षणिक सी उत्तेजना हूँ 
दिलका बढ़ता ताप हूँ जी .

वो स्मित की क्षीण रेखा
खिलखिलाती सी हंसी हूँ
दृगों पर जैसे दुआ सा
ना कोई मैं श्राप हूँ जी .

ठीक से पहचान करलो
और हृदयके द्वार खोलो
मुझसा ना कोई दूसरा है -
अपने जैसा आप हूँ जी .

मधुर दिलकी कल्पना हूँ
एक मधुरिम हास हूँ जी .
आम हूँ दुनियाकी खातिर
पर तुम्हारा ख़ास हूँ जी .

Wednesday, June 11, 2014

मैं तेरा चाकर नहीं हूँ .

तू गधे सा लाद दे या 
ऐसे ही खाली हंका ले . 
मैं गुलामों सा नहीं की 
चाहे जी जैसे चला ले .

मैं कोई बच्चा नहीं हूँ .
मैं कोई वाकर नहीं हूँ . 
बात सुनले ध्यान से तू 
मैं तेरा चाकर नहीं हूँ .

मानता हूँ तू खुदा है
देखली तेरी खुदाई .
दो घड़ीका प्यार देखा
और दी लम्बी जुदाई .

प्यार करता हूँ तुम्ही से
भूलता पाकर नहीं हूँ .
मिलना है तो मिल अभी
मैं लौटता जाकर नहीं हूँ .

नयी क्या है भौर है बस -

नयी क्या है भौर है बस -
इक सुबह ये और है बस .

रात के अंतिम चरण में 
लौ दीये की कांपती है .
भौर की उजली किरण तो 
बस निशा को ढांपती हैं .

भौर होती है तभी तो 
नव उमंगें जागती हैं -
पूरी होंगी या मिटेंगी
लरजती हैं कांपती हैं

Tuesday, June 10, 2014

वो रात अभी बाकी है .

हमसे मिलो 
ना मिलो .
एक मुलाकात 
अभी बाकी है .
जो अधूरी रही वो बात 
अभी बाकी है . 
उदास दिन गया 
शाम ढली . 
जो मुश्किल है वो रात 
अभी बाकी है .

ले चल नाविक धीरे धीरे .

प्राण बांसुरी -
धीमे सुर हैं .
पांवों में जब
बजे नुपुर हैं .

रूम झुम - 
झन्न झन्न 
बाज रहें हैं -
गीत मधुर सुर - 
साज रहें हैं .

मन आनंद -
हैं दुःख अनंत -
तू खे चल नौका
दूजे तीरे -

पतवारों का
शोर नहीं हो
ले चल नाविक 

धीरे धीरे .

मेरी पीर ना जानी कोई .

मन चिंतित - 
उल्लास बहूत हैं 
दूर खड़े अब 
पास बहूत हैं .
जीवन पर - 
विश्वास बहूत है .
कोई अपना - 
ख़ास बहूत है .

ना सपना - 
अंतर में कोई .
जागी पीर -
नहीं मैं सोयी .
गम का साथ
नहीं मैं रोई .
जो होना है -
हो जाए पर -
अनहोनी -
होए ना कोई .

सपनो के -
सब झूठे -
सच है -
पर जीने के
यही कवच हैं .
अपनी पीड़ा
अपनी होई
मेरी पीर -
ना जानी कोई .

Monday, June 9, 2014

अलग सा हूँ नहीं लेकिन

ना कोई पूछता हमको
ना अपनी राय जानी है .
वही अंदाज़ हैं अपने -
वही फिदरत पुरानी है .

कसम खाके जो कहता हूँ
वो यारो झूठ कहता हूँ .
कोई कहता रहे कुछ भी -
मैं अपनी धून में रहता हूँ .

किराए दार हूँ यारो
किराया दे नहीं सकता .
जेब रहती सदा खाली -
नया घर ले नहीं सकता .

बड़ा ही आम सा मैं हूँ
कौनसी तू भी रानी है .
नया कुछ भी नहीं यारा -
कहानी ही पुरानी है .

अलग सा दिख रहा हूँ मैं
अलग सा हूँ नहीं लेकिन .

Sunday, June 8, 2014

क्षणिकाएं

जिन्हें बसने की चाहत थी 
वही घर छोड़कर निकले 
नहीं थी चाह बसने की -
लो वापिस आगया हूँ मैं .

बड़ा बेकार सिस्टम है 
यहाँ तकदीर का यारो .
जो बसना चाहते हैं बस 
उसीको घर नहीं मिलता 
है जिसके पाँव में चक्कर 
उसे सफ़र नहीं मिलता .

पीर ग्याभिन है जनेगी 
पालनी मुझको पड़ेगी .
हाथ तो कोई बटाओ -
सामने से ये हटाओ .
जाने कबसे कहरहा हूँ 
मैं अकेला सह रहा हूँ .

क्यों करें उनसे शिकायत 
रूठते - मनुहार मेरी .
क्या करूँ यारो कसम से 
जीत उसकी हार मेरी .

हवाओं में उड़ रहा हूँ .
धूलसे मैं अट रहा हूँ .
रातदिन और वर्ष बीते . 
रोज़ थोडा घट रहा हूँ .

पूज तू जीवित पितृको 
पायेगा आशीष मेवा .
मूर्ति तो कल्पना है 
माँ पिता साकार देवा .


जेठ की तपती धरा 
सूर्य मनमानी करे .
जा कहो रंगरेज़ से 
वो चुनरी धानी करें .
घनकी अगवानी करें 
जो बूँद से पानी करें .

अलग चलना छोड़ दे 
अलग चलके क्या मिला .
अश्क से चलता नहीं ये -
बारिशों का सिलसिला .

एक जैसे लोग सब -
पर अलग सी सोच है .
चलना पायें दो कदम 
पाँव सबके मोच है .

पनघटों का मिलन बीती बात है 
भरी थी खाली वो गागर हो गयी 
आंसुओंने कर दिया सबकुछ बयाँ 
पीर मेरी क्यों उजागर हो गयी .

वक्त ने लिखवा दिया है 
यार मैं लिखता नहीं हूँ .
सैंकड़ों की भीड़ लेकिन 
मैं कभी बिकता नही हूँ .

मीर है तो पीर भी है 
बात ये गंभीर भी है .
शेर गीदड लग रहें हैं 
गालिबों की भीड़ भी है .

ना बटोही साथ हो और 
ना कोई भी साथ दे तो 
सोच ले हैं सौ झमेले -
जिन्दगी की राह में अब 
पथिक चलना है अकेले .

सुबह की ये लालिमा है 
पंछियों के गीत भी हैं . 
ये सुबह सचमुच नयी है 
साथ मन के मीत भी है

सुबह सवेरे शाम नहीं ले .
परमार्थ का नाम नहीं ले .
सीधा आना सीधा जाना -
नेकी कर ना जूते खाना .

प्यार में गम खुबसारे मिल गए 
अच्छे अच्छों के कलेजे हिल गए .

पनघटों पर प्यास है बिखरी हुई 
क्या भरें जल जब कोई गागर नहीं .
क्यों डरें फिर गमसे यारो सोचिये 
अश्क बूँदें हैं - कोई सागर नहीं .

पीर मेरी बाँट लो ना .

पीर ज्यादा हो गयी है 
पीर मेरी बाँट लो ना .
सेल में सब बेचता हूँ 
जो पसंद हो छांटलो ना .

ये नयी तुमसे मिली है 
वो पुरानी और की है .
गलत जो मैं कह रहा हूँ 
और थोडा डांट लो ना .

सोचना क्या यार मेरे
ना गलत सारा सही है .
जानती हो तुम यक़ीनन
बात जो मैंने कही है .

फिर भी यारा कह रहा हूँ
धार के संग बह रहा हूँ .
खामियाजा भर दिया है
सब हवाले कर दिया है .

कुवांरों को जेल कर दूं .

देखकर बारात यारो -
भूत शादी का चढा ना .
यार कहकर थक गए सब 
हो गया चिकना घड़ा ना .

मर गए जो बिना ब्याहे 
जो वधु भी घर ना लाये . 
कोसती हैं आज उनको
स्वर्ग की सब अप्सराएं .

अटल जैसे टल गए हैं
सारे कस्बल ढल गए हैं .
लालूजी से सीखते कुछ
नौ नौ बच्चे पल गए हैं .

पीर तब तक है बेगानी
घर जो ना आये जनानी .
ना विरहकी आग जानी
उनपे क्या आई जवानी .

वो हमें लगता है बौना -
चाहे चोटी पर खड़ा हो .
हौसले उसके क्या यारो
जो ना घोड़ी पर चढ़ा हो .

सोचता हूँ पास होकर -
आज सबको फेलकर दूं .
आशिकों का होसला बन
कुवांरों को जेल कर दूं .

Wednesday, June 4, 2014

बाँधना है शुद्र्ता आजाद कर दो .

बाँधना है शुद्र्ता - 
आजाद कर दो .
इन कपोतों को 
खुला आकाश देदो .

स्नेह के बंधन अगर 
मजबूत हों तो .
लौट आयेंगे घरों को 
शाम तक ये .

टूट जाते हैं क्षणिक
उत्त्जना में -
प्यार के बर्तन ये
नाजुक कांच के हैं .

तेज़ झोकों का यहाँ
घर्षण मना है .
दरख्त कोमल चीड के
पर काठ के हैं .

Tuesday, June 3, 2014

भक्त हूँ योगी नहीं हूँ .

मृत्युका वरदान पाकर 
फिर मिलेंगे मुस्कुराकर .
प्रेम भी है वासना भी -
भक्त हूँ योगी नहीं हूँ .

चाहे दुर्बल मन मेरा है 
स्वस्थ हूँ रोगी नहीं हूँ .
भोगमय संसार है ये -
भुक्ति हूँ भोगी नहीं हूँ .

आस्था विश्वास भी है
दूर सा तू पास भी है .
तरन तारायण नहीं हूँ .
नर हूँ नारायण नहीं हूँ .

चाहना ना टूटकर तुम

टूटकर चाहो नहीं तुम 
चाहने से क्या मिला है .
मिल गयी मेरा मुक्कदर - 
प्रेम ऐसा सिलसिला है .

पिघलना पत्थर कठिन है 
कर रहा फिर क्यों गिला है . 
गिरि या गिरिराज पूजो 
तू वहां किसको मिला है .

देवता नहीं दोस्त है तू
नाही तू भगवान सा है .
भक्त सा लगता नहीं मैं .
तुझसे जो टूटा  सिला है .