Friday, October 31, 2014

भूर्ण बचता है पिता के रूप में

एक शापित बूँद मां के गर्भ में -
भांपती नजरों से अपने तोलती .
धूलमें मिटना लिखा तकदीर में -
एक बिन लिखी इबारत बोलती .


कोई अर्पण ना कोई तर्पण कहीं
विगत पितरों सा नही सम्मान है
आई जाने कब यहाँ से कब गयी
इन अनामों का ना कोई नाम है .

मात्र शक्ति की कोई सत्ता नही
वृक्ष है लेकिन कोई पत्ता नही .
सूख जाते बीज तीक्ष्ण धूप में
भूर्ण बचता है पिता के रूप में .

Monday, October 27, 2014

तू भी बेटा हुआ सवाली

चली हवा यूँ बुझे दीये सब
बुझे दीये तो गयी दीवाली .
सबकी झोली भरी ख़ुशीसे
क्या सारे अब गमसे खाली .

चिंता ना कर होली आई
फिर जाए तेरी कंगाली .
नही मानता दिल भी मेरी
तू भी बेटा हुआ सवाली .

दरदर भटके मांगे मन्नत
सबकी झोली कितनी खाली .
मंदिर या मस्जिद आई तो
गर्दन अपनी वहीँ झूका ली .

आया था क्या लेकर पगले
आज गयी कल आने वाली .
आज है तेरी कल किसी की
दुनिया कहीं ना जाने वाली .

Monday, October 20, 2014

बीवी कहती मैं बुद्धू हूँ

ये कितना हृदय विदारक है
लेकिन मैं चीख नही सकता .
बीवी कहती मैं बुद्धू हूँ -
जीवन भर सीख नही सकता .

तरकारी तक की परचेजिंग
ना मुझको करनी आती है .
ये मोल भाव की बातों में
माहिर बीवी कहलाती है .

फल पके हुए भाजी कच्ची
समझा ना अबतक मैं सच्ची
भिन्डी की दूम तोड़ो पहले
परखो पक्की है या कच्ची .

ये सख्त टमाटर है प्रियतम
ये आलू हरा नही लेना .
धनिया मिर्ची ना मुफ्त मिले
उससे तरकारी क्या लेना .

शौपिंग में मेरे यार कहीं
घरवाली का संग में होना .
वो दीवाली क्या दिवाली -
जब तक दीवाला ना होना .

Thursday, October 9, 2014

वो भी बुझे बुझे हैं

वो भी बुझे बुझे हैं -
ये दिल भी परेशां सा . 
ना जाने क्या हुआ है -
क्यों आँख में नमी है .

क्यों गिर रहे हैं आंसू 
शबनम से दरखतों पर .
किसने इन्हें सताया - 
बेदर्द क्यों जमीं है .

उस ऊँचे आसमां से 
पूछो तो सही यारो .
किस बात का वहम है 
किस बात की कमी हैं .


यूँ सर पे आसमां है -
पैरों तले जमीं हैं .
दिल भाव से भरा पर - 
कहने को कुछ नहीं है .


नीरस ही सही लेकिन 
जीना सही है यारो .
अब मौत भूतनी की -
यूँ कौन सी हंसी हैं .

Monday, October 6, 2014

खुदाके दरपे सर अपना झुकाकर देखिये .

अकड का वास्ता यारो अदब से कुछ नहीं 
खुदाके दरपे सर अपना झुकाकर देखिये .
रुलाकर दूर जाने की अदा छोडो सनम -
कभी तो जानेमन हमको हंसाकर देखिये .

गमोंकी आग आखिर क्यों नजर आती नही . 
बुझे दिल से मेरे- उठता धुंवा सा देखिये .
सच कुनिंन होता यार सच कहते हैं लोग 
लगे कडुवा मगर पीकर जरा सा देखिये .

प्यार में मरने की कसम खाते हैं लोग 
कभी तो प्यार में जीकर जरा सा देखिये .
गली अंधी से यारो जब निकलके आ गए -
रास्ता ठीक और चौड़ा जरा सा देखिये .


Wednesday, October 1, 2014

प्रेम पचीसी

प्रेम पचीसी लिख रहे
बाबू जगत अनाथ .
ना दमड़ी का फर्क है
चाहे करलो जांच .

अठासी का नेट है
छत्तीस की हैं सेंट .
वैट लगा ले बावले
पूरा सेंट परसेंट .

बिल देना है मालका
इसपर भी दे ध्यान
काफी ठंडी ना चले
बीयर का सविधान .

पिक्चर बाकी है अभी
वो भी करले नोट .
मल्टीप्लेक्स ही ठीक है
उसमे अच्छी औट .

इतना जो तू कर सके
मिले प्रेम का वोट
वर्ना नियत में तेरी
शत प्रतिशत है खोट .