Sunday, October 27, 2013

भक्त भी हूँ - भाव भी है .

भीड़ है भगवान् भी है
आफतों में जान भी है .
दूर बैठा वो कसम से
पंडितों की शान भी है .

मिलन की मुश्किल घडी है
पहुंचना मुश्किल बडी है .
पंडितों के फ़ौज या रब
सब तुझे घेरे पड़ी है .

तू बंधा तो भाव से पर
मांगते हैं भाव ये पर
बंध गया जाने तू कैसे
तू तो मुक्तिकार भी है .

है मेरी अंतिम विनय ये
जो कहीं तू सुन रहा हो .
निकलकर बाहर चला आ
भक्त भी हूँ -  भाव भी है .

Wednesday, October 23, 2013

जिन्दगी

जिन्दगी ख्वाब होता तो टूट जाता कबका
सच थी इसलिए तो अब तलक जिन्दा हूँ .

जिन्दगी मजाक होती तो हंस लिए होते .
जो जाल होती तो कबके फंस लिए होते .

जिन्दगी आज़ादी है - बंधन भी है
लिपटे सांप और गंध चन्दन भी है .

ये मौका जो - अभी तो हाथ में है
जिन्दगी हाथ पकडे मेरे साथ में है .

फिर मिलेगी दुबारा यकीं नहीं होता
कौन जाने फिर  -मिले ना मिले कभी .

Tuesday, October 15, 2013

अंतिम खोल करना चाहता हूँ .


बाज उड़ते हैं गंगन में - नीड चिड़िया के हैं बन में 

आसुरी शक्ति जुटी हैं - पाप के बेहद सृजन में .

कोटि कोटि आखं देखें बाट - आयेंगे कभी रघुनाथ

और पत्थर की अहिल्या विगलित होती है मन में .



आज इस असम धरा को गोल करना चाहता हूँ 

बाद रावण के धरा का - तोल करना चाहता हूँ .

पाप बाकी हैं धरा पर - भार से रत है ये भारत .

आज सबसे मैं ये अंतिम खोल करना चाहता हूँ .







आओ बांचें प्रेम पाती .

चाँद आधा - 

मंद होता - 

दीया बाती . 



मंद शीतल - 

चांदनी मन को 

ना भाती .



फिर पुरानी 

याद के खोलें 

झरोखे - आओ 

बांचें प्रेम पाती .

पुरानी याद - फिर शोले हुए हैं .

पखेरू लौटकर - 

सब आ गए हैं -

हवा ने आज 

'पर' खोले हुए हैं .


बुझी चिंगारियों को - 

छू लिया जो 

पुरानी याद - 

फिर शोले हुए हैं .

मुक्तक

बहूत हंसती थी आँखें - रुलाये जा रहा हूँ मैं .

जो यादोंमें थे - उनको भूलाये जारहा हूँ मैं .


बेवफा के लिए सोच - यार मरना क्या

गये जो भूल - उनको याद करना क्या .


यूँ रही उनसे शिकायत - कब नहीं .

थी कभी उनसे शिकायत अब नहीं .


खुबसूरत थी जहाँ तन्हाईयाँ - 

आज गहरी हैं वहां पर खाइयाँ .


कोई दूर है - गम जिसका पास है

जाने क्यों आज फिर दिल उदास .


जेठमें ठंडी अगन - सावन आग सा लगे .

ख्वाब सच सा लगे - सच ख्वाब सा लगे .


तुमको हक़ है - 

चाहे जैसे संभालो .

मुन्तजिर हूँ - आपका

आकाश सा औढ लो -

धरती सा बिछा लो .


दोस्ती फूलों से - काँटों से करार

बोझ जुल्फों का बहूत होता है यार .


आज दिल फिर - किसी ने ठुकराया .

बेवफा बस तेरा ही नाम याद आया .

मोदी जी अर्जी यही - यही करेगा सूट 
बातों से माने नहीं - मार बनाओ भूत .
उल्टा इनको टांग कर - हंटर मारो सूंत .
लहूना निकले बूँदभी निकले इनका मूत .

आज नहीं तो तडके होंगे .
कार्यकर्त्ता भी भड़के होगें .
जाने दो तुम राहुल भैया -
अब मनमोहन खडके होंगे .

ना बात चली न बात कही 
वो उनके यारो साथ गयी .
कल निकलेगा फिरसे सूरज 
क्या देखें अंधी रात गयी .

छुपके दिल में 
रह रहा है वो कहीं .
ना कहीं भी -
ढूँढने जाना पड़ेगा .
गर पुकारो प्रेम से 
तो दोस्तों .
वो कहीं भी हो - 
उसे आना पड़ेगा .

नियति के पंख हैं और 
फासला कितना यहाँ है .
पंछी उड़ता आसमां में 
घोंसला जाने कहाँ हैं .

सौ सुख और हजारों दुःख हैं 
माने कोई या ना माने .
मरना कौन यहाँ मुश्किल है 
जीना सीख अरे दीवाने .


छोड़कर अब आ गया संसार तेरा 
सच नहींथा झूठथा वो प्यार तेरा .
चाहिए ना फूल अब माली हुआ हूँ 
कल भरा था आजकुछ खाली हुआ हूँ .


जिन्दगी सुंदर बहूत है प्यार कर ले .
जो मिली जैसी भी है स्वीकार कर ले .


बोलते सब लोग - थोडा कम कहें 
मौन हों सब यार तो कुछ हम कहें .





Wednesday, October 2, 2013

जी जाए कुंवर अकेला है .

ना अपना - कोई पराया है 
प्रभु ने भी यही सुनाया है .
लड़ जा अपने जो गैरों से 
गीता में यही बताया है .

राजा है पर प्रजापिता नहीं
पंछी 'पर' हैं - पर उड़ा नहीं 
कागा बोली सब बोल रहे -
हंसों का अतापता नहीं . 

भीक्षा में जो स्वराज मिला
वो कल मिला ना आज मिला
जो मरे जिनावर खाते हैं -
वो ही कव्वे कहलाते हैं .

स्वाधीन हुए - पर सपना है
माना हाकिम भी अपना है .
खाने पीने की हौड बहूत -
जो खालो वो ही अपना है .

सब अंग्रेजी में गाते हैं
छैला बनकर इतराते हैं .
क्या वक्त आगया है यारो
कव्वे भी मोती खाते हैं .

स्वदेशी बात पुरानी है
परदेसी सही निशानी है .
घर महके देसी भोजन से
पर बाहर पिज़्ज़ा खानी हैं .

देसी से हम भी नहीं रहे
चीनी भाई सब कहीं रहें
पूजा के आले से लेकर
हम देसी वाले नहीं रहे .

गाँधी रोता है जन्नत में
आंधी* रोती है मन्नत में .
ये चला चली का मेला है
जी जाए कुंवर अकेला है .