भौरका तारा दिखा और दिन हुआ
ख़ास यूँ तो बात - कोई है नहीं
धूप चारो और है छिटकी हुई
चांदनी सी रात कोई है नहीं .
ख़ास यूँ तो बात - कोई है नहीं
धूप चारो और है छिटकी हुई
चांदनी सी रात कोई है नहीं .
नवगृह और तारसप्तक तू बता
क्यों ढूलाये जारहे आखिर चंवर
चौक पूरे और मंगलगान थे -
इक कलिसे हार बैठा था भ्रमर .
क्यों ढूलाये जारहे आखिर चंवर
चौक पूरे और मंगलगान थे -
इक कलिसे हार बैठा था भ्रमर .
पुष्प कुछ मुरझाये सेहरेकी अभी
गये दिन वो आज बीती बात है .
रंगनी का संग मधुरिम है बना -
आज जीवन संगिनी जो साथ है .
गये दिन वो आज बीती बात है .
रंगनी का संग मधुरिम है बना -
आज जीवन संगिनी जो साथ है .
( विवाहकी 37वीं वर्षगाँठ पर)