Saturday, July 19, 2014

तू है कहाँ हिन्दुस्तानी .

कोई कुडमाई नहीं - 
डेटिंग पे जाती हैं जवानी .
हर नगर और शहर की 
अब एक जैसी है कहानी .

जैसा बोया काट लो अब - 
खाई गहरी पाटलो अब . 
आज तरुणोंकी अनोखी किस्म है 
रूह जिन्दा नहीं बस जिस्म है . 

ओढ़ चाहे ले विलायती
पर बिछा देसी बिछौना .
रोकना बसमें नहीं अब
हो रहा है जो है होना .

भोगियों की दास्ताने -
मत सुनो योगी जुबानी .
पढ़ लिया है पाठ अब -
तू है कहाँ हिन्दुस्तानी .

Monday, July 7, 2014

जमीर हूँ मैं .

जब चाहे - 
जहाँ चाहे - 
जैसे चाहे रख - 
रह लूँगा का .

नियति के दंश 
उफ्फ नहीं करूंगा 
संग तेरे - 
समभाव से -
सह लूँगा .

सच हूँ -
ना कोई -
सपना हूँ .
गैर नहीं -
तेरा अपना हूँ .


ना कोई रांझा -
ना हीर हूँ मैं
कोई और नहीं -
तेरे अंतर में बसा
जमीर हूँ मैं .

Sunday, July 6, 2014

धर्म अब व्यापार ही है

धर्म अब व्यापार ही है 
हरित सा ये थार ही है
प्यास का परिमाण झूठा - 
सिन्धु पूरा खार ही है .

गुरु मो सम है ना ग्यानी 
ना जो नानक ना फरीदो 
बिक रहा सस्ते में यारो 
मोक्ष का सपना खरीदो .

धूप में आराधना कर -
मन्त्र मिलता है जपो तो
द्रव्य की समिधा तो डालो
और थोडा सा तपो तो .

ईंटों पर हैं किसी के सर पर खड़े नहीं .

वो बचपन क्या जो - आपस में लडे नहीं 
वो परवत क्या जो - सीधे सीधे खड़े नहीं .

वो जिद भी क्या जो - यार कभी अड़े नहीं
होंगे एवरेस्टसे पर - हमसे ज्यादा बड़े नहीं .

भाव दो के ना दो तुम्हारी मर्जी - 
आशिक हैं कोई ऐसे गिरे पड़े नहीं 

प्यार क्या जिसमे लाते पड़े नहीं . 
वो गुस्सा ख़ाक जो चांटे जड़े नहीं .

वो बीवियां क्या जो हर दिन लडे नहीं
वो आदमी क्या हरबात पर अड़े नहीं .

पागल तो हैं यार पर इतने बड़े नहीं
ईंटों पर हैं किसी के सर पर खड़े नहीं .

ये मोदी भी कुछ ज्यादा बड़े नहीं -
करें कुछ फैसले पर ज्यादा कड़े नहीं .

राह वैसे बंद कोई है नहीं .

राह वैसे बंद कोई है नहीं .
बंदसा उपबंध कोई है नहीं .
प्रेयसी से द्वंद कोई है नहीं 
सांवरी सी गौर राधा भी नहीं 
गीत प्यारा छंद कोई है नहीं . 

प्रेमिका कमसिन है कोमल कामिनी
गज नहीं हिरनी सरीखी गामिनी 
लरजती है ना वो नाजुक बेल है .
पाश उसका है या कोई जेल है . 
न्यायकर्ता उस सरीखी ना मिले
उसके सम्मुख तो विधाता फेल है .

उसके होनेके हैं अपने फायदे
इश्क है ना प्यार जैसे कायदे .
रूठना मनुहार जैसा कुछ नहीं
प्यार में व्यवहार जैसा कुछ नहीं .
बंधा रहता हूँ मैं कच्ची डोर से
समर्पण अभिसार जैसा कुछ नहीं .

बहूत सीधी बात तुमसे कह रहा
तुकों में अतुकांत जैसा बह रहा .
अन्गृल प्रलाप जैसा भी नहीं
शीत में उत्ताप जैसा कुछ नहीं
पुन्य है ना पाप जैसा कुछ नहीं
पत्नी हो ना - आप जैसा कुछ नहीं .

मुक्तियों का द्वार हूँ मैं .

गीत गीता सा मधुर हूँ 
जीत किंचित हार हूँ मैं .
मैं विरह की वेदना हूँ - 
मिलन का विस्तार हूँ मैं .

अप्रकट कुछ प्रकट सा 
जो दिख रहा संसार हूँ मैं .
ढूंढना मुश्किल मुझे -
रहता क्षितिज के पार हूँ मैं .

चटकती जैसे शिरा हूँ  -
रक्त का संचार हूँ मैं  .
विश्व अणुसा बिखरता  -
रचना कभी संहार हूँ मैं  .

ढूंढ ले खोता नहीं हूँ -
अचेतन सोता नहीं हूँ .
ना कहीं तन्हाइयों में -
भीड़ में खोता नहीं हूँ .

मैं प्रणय की याचना हूँ
जिस्म की ना वासना हूँ
प्रेम की आराधना में -
मुक्तियों का द्वार हूँ मैं .

साथ तेरे रह रहा हूँ .

दौड़ता 
आवेग बनके 
जिस्म की -
इस वीथिका में .
चिर संचित -
प्राण अमृत -
डोलता जो -
वृक्ष की अंतिम 
शिरा में .

कौन हूँ मैं -
कह रहा है .
प्रीत का -
प्रतिबिम्ब हूँ
जो अश्रुओं में
बह रहा हूँ .

हे विरह के
भीत मानव
पीर मैं क्यों
सह रहा हूँ .
देख मन के
चक्षुओं से -
साथ तेरे -
रह रहा हूँ .

साथ तेरे रह रहा हूँ .

दौड़ता 
आवेग बनके 
जिस्म की -
इस वीथिका में .
चिर संचित -
प्राण अमृत -
डोलता जो -
वृक्ष की अंतिम 
शिरा में .

कौन हूँ मैं -
कह रहा है .
प्रीत का -
प्रतिबिम्ब हूँ
जो अश्रुओं में
बह रहा हूँ .

हे विरह के
भीत मानव
पीर मैं क्यों
सह रहा हूँ .
देख मन के
चक्षुओं से -
साथ तेरे -
रह रहा हूँ .