जब चाहे -
जहाँ चाहे -
जैसे चाहे रख -
रह लूँगा का .
नियति के दंश
उफ्फ नहीं करूंगा
संग तेरे -
समभाव से -
सह लूँगा .
सच हूँ -
ना कोई -
सपना हूँ .
गैर नहीं -
तेरा अपना हूँ .
ना कोई रांझा -
ना हीर हूँ मैं
कोई और नहीं -
तेरे अंतर में बसा
जमीर हूँ मैं .
जहाँ चाहे -
जैसे चाहे रख -
रह लूँगा का .
नियति के दंश
उफ्फ नहीं करूंगा
संग तेरे -
समभाव से -
सह लूँगा .
सच हूँ -
ना कोई -
सपना हूँ .
गैर नहीं -
तेरा अपना हूँ .
ना कोई रांझा -
ना हीर हूँ मैं
कोई और नहीं -
तेरे अंतर में बसा
जमीर हूँ मैं .
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