Monday, July 7, 2014

जमीर हूँ मैं .

जब चाहे - 
जहाँ चाहे - 
जैसे चाहे रख - 
रह लूँगा का .

नियति के दंश 
उफ्फ नहीं करूंगा 
संग तेरे - 
समभाव से -
सह लूँगा .

सच हूँ -
ना कोई -
सपना हूँ .
गैर नहीं -
तेरा अपना हूँ .


ना कोई रांझा -
ना हीर हूँ मैं
कोई और नहीं -
तेरे अंतर में बसा
जमीर हूँ मैं .

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