Tuesday, November 19, 2013

टिके हैं जो बहानो से

छुपे सारे जिनावर अब 

हमें वो खा नहीं सकते 


जो निकला शेर जंगल में - 


सामने आ नहीं सकते .



उगा प्रचंड जो सूरज - 


दुबक बैठे हैं सब तारे .


उन्हें है एक ही चिंता - 


की अब हारे - की अब हारे . 



यही आवाज आती है 


अब दिल्ली के मकानों से 


उड़ादो चील गिद्दों को 


टिके हैं जो बहानो से .


No comments:

Post a Comment