Tuesday, November 19, 2013

निकलते और कुछ पहले




निकलते और कुछ पहले
ये मैले आसमां में तुम -
तो सच मानो कभी उजड़ी
ये फुलवारी नहीं होती .

ना काँटों का सितम होता 
ना कुनबा बेरहम होता .
ये भारत भी चमन होता .
हंसी अपना वतन होता .

नमो नारायण कहना
सीख लेते सब जहाँ वाले
हमारे यार मोदी सा ना -
कोई अहले करम होता .

अब इसको रोकना ना -
टोकना पागल हवाओं तुम .
ये पर्वत सा गुरु होगा -
रुका ना - जो शुरू होगा .

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