Friday, December 8, 2017

हे धर्मराज अभी तुम दूसरा कोई घर देखो


थामने हैं कई हाथ
कई जाने अभी बचानी हैं
किसीकी सिंदूर की डिब्बी
खोयी उसे पहुचानी है 

कई किश्तियाँ चली थी
जो लौट अभी आनी हैं
बहूत सी उलझने बाकी
जो मुझे सुलझानी हैं

बहूत सी ग़ज़ल बाकी
जो जमाने को सुनानी हैं
कई अनकहे अफ़साने
कई पुरानी कहानी हैं

बहुत से वायदे अधूरे हैं
भरने हैं कई घाव -
कुछ तो पूर्ति कर दूं
जो अभी आधे अधूरे हैं

यहाँ मरने की फुर्सत कहाँ
कोई दूसरा नगर देखो
हे धर्मराज अभी तुम
दूसरा कोई घर देखो

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