बाँधना है शुद्र्ता -
आजाद कर दो .
इन कपोतों को
खुला आकाश देदो .
स्नेह के बंधन अगर
मजबूत हों तो .
लौट आयेंगे घरों को
शाम तक ये .
टूट जाते हैं क्षणिक
उत्त्जना में -
प्यार के बर्तन ये
नाजुक कांच के हैं .
तेज़ झोकों का यहाँ
घर्षण मना है .
दरख्त कोमल चीड के
पर काठ के हैं .
आजाद कर दो .
इन कपोतों को
खुला आकाश देदो .
स्नेह के बंधन अगर
मजबूत हों तो .
लौट आयेंगे घरों को
शाम तक ये .
टूट जाते हैं क्षणिक
उत्त्जना में -
प्यार के बर्तन ये
नाजुक कांच के हैं .
तेज़ झोकों का यहाँ
घर्षण मना है .
दरख्त कोमल चीड के
पर काठ के हैं .
No comments:
Post a Comment