Wednesday, June 4, 2014

बाँधना है शुद्र्ता आजाद कर दो .

बाँधना है शुद्र्ता - 
आजाद कर दो .
इन कपोतों को 
खुला आकाश देदो .

स्नेह के बंधन अगर 
मजबूत हों तो .
लौट आयेंगे घरों को 
शाम तक ये .

टूट जाते हैं क्षणिक
उत्त्जना में -
प्यार के बर्तन ये
नाजुक कांच के हैं .

तेज़ झोकों का यहाँ
घर्षण मना है .
दरख्त कोमल चीड के
पर काठ के हैं .

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