Sunday, June 8, 2014

क्षणिकाएं

जिन्हें बसने की चाहत थी 
वही घर छोड़कर निकले 
नहीं थी चाह बसने की -
लो वापिस आगया हूँ मैं .

बड़ा बेकार सिस्टम है 
यहाँ तकदीर का यारो .
जो बसना चाहते हैं बस 
उसीको घर नहीं मिलता 
है जिसके पाँव में चक्कर 
उसे सफ़र नहीं मिलता .

पीर ग्याभिन है जनेगी 
पालनी मुझको पड़ेगी .
हाथ तो कोई बटाओ -
सामने से ये हटाओ .
जाने कबसे कहरहा हूँ 
मैं अकेला सह रहा हूँ .

क्यों करें उनसे शिकायत 
रूठते - मनुहार मेरी .
क्या करूँ यारो कसम से 
जीत उसकी हार मेरी .

हवाओं में उड़ रहा हूँ .
धूलसे मैं अट रहा हूँ .
रातदिन और वर्ष बीते . 
रोज़ थोडा घट रहा हूँ .

पूज तू जीवित पितृको 
पायेगा आशीष मेवा .
मूर्ति तो कल्पना है 
माँ पिता साकार देवा .


जेठ की तपती धरा 
सूर्य मनमानी करे .
जा कहो रंगरेज़ से 
वो चुनरी धानी करें .
घनकी अगवानी करें 
जो बूँद से पानी करें .

अलग चलना छोड़ दे 
अलग चलके क्या मिला .
अश्क से चलता नहीं ये -
बारिशों का सिलसिला .

एक जैसे लोग सब -
पर अलग सी सोच है .
चलना पायें दो कदम 
पाँव सबके मोच है .

पनघटों का मिलन बीती बात है 
भरी थी खाली वो गागर हो गयी 
आंसुओंने कर दिया सबकुछ बयाँ 
पीर मेरी क्यों उजागर हो गयी .

वक्त ने लिखवा दिया है 
यार मैं लिखता नहीं हूँ .
सैंकड़ों की भीड़ लेकिन 
मैं कभी बिकता नही हूँ .

मीर है तो पीर भी है 
बात ये गंभीर भी है .
शेर गीदड लग रहें हैं 
गालिबों की भीड़ भी है .

ना बटोही साथ हो और 
ना कोई भी साथ दे तो 
सोच ले हैं सौ झमेले -
जिन्दगी की राह में अब 
पथिक चलना है अकेले .

सुबह की ये लालिमा है 
पंछियों के गीत भी हैं . 
ये सुबह सचमुच नयी है 
साथ मन के मीत भी है

सुबह सवेरे शाम नहीं ले .
परमार्थ का नाम नहीं ले .
सीधा आना सीधा जाना -
नेकी कर ना जूते खाना .

प्यार में गम खुबसारे मिल गए 
अच्छे अच्छों के कलेजे हिल गए .

पनघटों पर प्यास है बिखरी हुई 
क्या भरें जल जब कोई गागर नहीं .
क्यों डरें फिर गमसे यारो सोचिये 
अश्क बूँदें हैं - कोई सागर नहीं .

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