जिन्हें बसने की चाहत थी
वही घर छोड़कर निकले
नहीं थी चाह बसने की -
लो वापिस आगया हूँ मैं .
बड़ा बेकार सिस्टम है
यहाँ तकदीर का यारो .
जो बसना चाहते हैं बस
उसीको घर नहीं मिलता
है जिसके पाँव में चक्कर
उसे सफ़र नहीं मिलता .
पीर ग्याभिन है जनेगी
पालनी मुझको पड़ेगी .
हाथ तो कोई बटाओ -
सामने से ये हटाओ .
जाने कबसे कहरहा हूँ
मैं अकेला सह रहा हूँ .
क्यों करें उनसे शिकायत
रूठते - मनुहार मेरी .
क्या करूँ यारो कसम से
जीत उसकी हार मेरी .
हवाओं में उड़ रहा हूँ .
धूलसे मैं अट रहा हूँ .
रातदिन और वर्ष बीते .
रोज़ थोडा घट रहा हूँ .
पूज तू जीवित पितृको
पायेगा आशीष मेवा .
मूर्ति तो कल्पना है
माँ पिता साकार देवा .
जेठ की तपती धरा
सूर्य मनमानी करे .
जा कहो रंगरेज़ से
वो चुनरी धानी करें .
घनकी अगवानी करें
जो बूँद से पानी करें .
अलग चलना छोड़ दे
अलग चलके क्या मिला .
अश्क से चलता नहीं ये -
बारिशों का सिलसिला .
एक जैसे लोग सब -
पर अलग सी सोच है .
चलना पायें दो कदम
पाँव सबके मोच है .
पनघटों का मिलन बीती बात है
भरी थी खाली वो गागर हो गयी
आंसुओंने कर दिया सबकुछ बयाँ
पीर मेरी क्यों उजागर हो गयी .
वक्त ने लिखवा दिया है
यार मैं लिखता नहीं हूँ .
सैंकड़ों की भीड़ लेकिन
मैं कभी बिकता नही हूँ .
मीर है तो पीर भी है
बात ये गंभीर भी है .
शेर गीदड लग रहें हैं
गालिबों की भीड़ भी है .
ना बटोही साथ हो और
ना कोई भी साथ दे तो
सोच ले हैं सौ झमेले -
जिन्दगी की राह में अब
पथिक चलना है अकेले .
सुबह की ये लालिमा है
पंछियों के गीत भी हैं .
ये सुबह सचमुच नयी है
साथ मन के मीत भी है
सुबह सवेरे शाम नहीं ले .
परमार्थ का नाम नहीं ले .
सीधा आना सीधा जाना -
नेकी कर ना जूते खाना .
प्यार में गम खुबसारे मिल गए
अच्छे अच्छों के कलेजे हिल गए .
पनघटों पर प्यास है बिखरी हुई
क्या भरें जल जब कोई गागर नहीं .
क्यों डरें फिर गमसे यारो सोचिये
अश्क बूँदें हैं - कोई सागर नहीं .
वही घर छोड़कर निकले
नहीं थी चाह बसने की -
लो वापिस आगया हूँ मैं .
बड़ा बेकार सिस्टम है
यहाँ तकदीर का यारो .
जो बसना चाहते हैं बस
उसीको घर नहीं मिलता
है जिसके पाँव में चक्कर
उसे सफ़र नहीं मिलता .
पीर ग्याभिन है जनेगी
पालनी मुझको पड़ेगी .
हाथ तो कोई बटाओ -
सामने से ये हटाओ .
जाने कबसे कहरहा हूँ
मैं अकेला सह रहा हूँ .
क्यों करें उनसे शिकायत
रूठते - मनुहार मेरी .
क्या करूँ यारो कसम से
जीत उसकी हार मेरी .
हवाओं में उड़ रहा हूँ .
धूलसे मैं अट रहा हूँ .
रातदिन और वर्ष बीते .
रोज़ थोडा घट रहा हूँ .
पूज तू जीवित पितृको
पायेगा आशीष मेवा .
मूर्ति तो कल्पना है
माँ पिता साकार देवा .
जेठ की तपती धरा
सूर्य मनमानी करे .
जा कहो रंगरेज़ से
वो चुनरी धानी करें .
घनकी अगवानी करें
जो बूँद से पानी करें .
अलग चलना छोड़ दे
अलग चलके क्या मिला .
अश्क से चलता नहीं ये -
बारिशों का सिलसिला .
एक जैसे लोग सब -
पर अलग सी सोच है .
चलना पायें दो कदम
पाँव सबके मोच है .
पनघटों का मिलन बीती बात है
भरी थी खाली वो गागर हो गयी
आंसुओंने कर दिया सबकुछ बयाँ
पीर मेरी क्यों उजागर हो गयी .
वक्त ने लिखवा दिया है
यार मैं लिखता नहीं हूँ .
सैंकड़ों की भीड़ लेकिन
मैं कभी बिकता नही हूँ .
मीर है तो पीर भी है
बात ये गंभीर भी है .
शेर गीदड लग रहें हैं
गालिबों की भीड़ भी है .
ना बटोही साथ हो और
ना कोई भी साथ दे तो
सोच ले हैं सौ झमेले -
जिन्दगी की राह में अब
पथिक चलना है अकेले .
सुबह की ये लालिमा है
पंछियों के गीत भी हैं .
ये सुबह सचमुच नयी है
साथ मन के मीत भी है
सुबह सवेरे शाम नहीं ले .
परमार्थ का नाम नहीं ले .
सीधा आना सीधा जाना -
नेकी कर ना जूते खाना .
प्यार में गम खुबसारे मिल गए
अच्छे अच्छों के कलेजे हिल गए .
पनघटों पर प्यास है बिखरी हुई
क्या भरें जल जब कोई गागर नहीं .
क्यों डरें फिर गमसे यारो सोचिये
अश्क बूँदें हैं - कोई सागर नहीं .
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