Sunday, June 8, 2014

कुवांरों को जेल कर दूं .

देखकर बारात यारो -
भूत शादी का चढा ना .
यार कहकर थक गए सब 
हो गया चिकना घड़ा ना .

मर गए जो बिना ब्याहे 
जो वधु भी घर ना लाये . 
कोसती हैं आज उनको
स्वर्ग की सब अप्सराएं .

अटल जैसे टल गए हैं
सारे कस्बल ढल गए हैं .
लालूजी से सीखते कुछ
नौ नौ बच्चे पल गए हैं .

पीर तब तक है बेगानी
घर जो ना आये जनानी .
ना विरहकी आग जानी
उनपे क्या आई जवानी .

वो हमें लगता है बौना -
चाहे चोटी पर खड़ा हो .
हौसले उसके क्या यारो
जो ना घोड़ी पर चढ़ा हो .

सोचता हूँ पास होकर -
आज सबको फेलकर दूं .
आशिकों का होसला बन
कुवांरों को जेल कर दूं .

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