Thursday, April 10, 2014

क्यों कहूं ये भौर ही है .

रात की हर बात झूठी -
क्या मिली जो रात बीती .
शाम जलती कोयले सी -
दिन ढला सा सुबह रीती .

मिलगयी जिसको मिलीसी 
कलि वो जैसे खिली सी .
खार की हर बात झूठी - 
शाख वो जैसे हिली सी .

आइना कुछ भी नहीं है -
सच मगर कुछ और ही है .
रात दिन सा हो भले पर
क्यों कहूं ये भौर ही है .

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