Thursday, April 17, 2014

अब तेरा - होना नहीं है .

जागना - सोना नहीं है
उम्र भर रोना नहीं है .
कितने रंगी ख्वाब हों  - 
पर नींद में खोना नहीं है .

नभ से अच्छी छत है और
धरा सी सेज अच्छी
ईंट गारे के मकाँ में -
कैद अब होना नहीं है .

तैर करके पार जाना
अब मेरा मुमकिन नहीं है
नाव लहरों के सफ़र में -
सिन्धु सा होना नहीं हैं .

सर टिकाकर रो सकूं मैं
ना कहीं कान्धा कोई है .
नींद भर कर सो सकूं मैं .
अब कोई कोना नहीं है .


रब मेरा राखा मुझे वो
दे ही देगा जो भी चाहूँ .
चाहे कोई ना मिले पर
अब तेरा - होना नहीं है .

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