Friday, June 17, 2016

जहाँ रस्सी वहां फंदे भी हैं .

धर्म उन्मांद की हद तक
आँख वाले हैं अंधे भी हैं
नफरतें सेलमें उपलब्ध
प्रेम के भाव मंदे भी है

खुले में उड़ते परिंदे भी हैं
इंसान हैं तो दरिंदे भी हैं .
जिन्दगी जीना बेखौफ -
मौत आए चार कंधे भी हैं

खुदा है खुदाके बन्दे भी हैं
मंदिर पुजारी है चंदे भी हैं
जरा बचके चलना दिल मेरे
जहाँ रस्सी वहां फंदे भी हैं .

No comments:

Post a Comment