Thursday, July 9, 2015

क्षणिकाएं

अगिनत अकूत धनकी खान है 
बाबा बापू की अनूठी शान है .
साष्टांग दंडवत इनको करो -
ये नहीं हैं आदमी भगवान् हैं

सुधा ना दो जहरतो मत घोलिये .
टोकते अब लोग मुंह मत खोलिए .
चुप रहो बेमौत मारे जाओगे -
संग सबके जय इन्हीं की बोलिए .

दुर्गकी दीवार - जैसे नर लगे 
चींटियों से आदमी अनुचर लगे .
फंडसे पाखण्ड यारो देखिये - 
छविभी ना देवसे कमतर लगे .

ठाठ बाठ हैं रईसी शान हूँ .
क्या हुआ थोडा बहुत इंसान हूँ .
जय विजय से गूंजता है आसमां -
भक्त जैसा कुछ नहीं भगवान् हूँ .

वापिसी की ना बची है आस यारो क्या करूँ 
उठ गया भगवानसे विश्वास यारो क्या करूँ .
जो भी था वो सब समर्पित कर दिया -
एक पाई भी बची न पास यारो क्या करूं .


No comments:

Post a Comment