घर मकां कुछ भी नहीं
खुला आकाश है .
पंछियों की -
पंक्तियों के पास है .
क्षीण दुर्बल ही सही -
पर आस है .
आज फिरसे -
हम अकेले रह गये
रेत के थे दुर्ग -
सारे ढह गये .
खुला आकाश है .
पंछियों की -
पंक्तियों के पास है .
क्षीण दुर्बल ही सही -
पर आस है .
आज फिरसे -
हम अकेले रह गये
रेत के थे दुर्ग -
सारे ढह गये .
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