Sunday, May 10, 2015

और सब लाचार हैं जी .

बात मैं कुछ बात जैसा
ना जलों की राख जैसा .
धूलि कणसा शुद्र जिससे
बन रहा संसार है जी .

आम मुझसे हैं करोड़ों
ख़ास जैसे चार हैं जी .
फूल हूँ मैं ही चमन का
और सारे खार हैं जी .

जीत जैसा मैं अकेला
और सारे हार हैं जी .
एक बस मैं काम का -
बाकी सभी बेकार हैं जी .

क्या गलत सारा सही है
बात जो मैंने कही है .
मैं नहीं डरता किसीसे
और सब लाचार हैं जी .
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