Wednesday, February 4, 2015

मिलन की रात ना आई .

यूँ भारी भीड़ तो आई मगर 'वो' ख़ास ना आई .
यूँ यारो होश तो आया मगर फिर सांस ना आई .

जमाने की करी परवाह वो हरदम पासना आई .
महूब्ब्त छोडिये जी - दोस्ती भी रास ना आई .

सभी थे फूल कागज़के कहींसे बॉस ना आई
मरू में फूल फल तो छोडिये जी घास ना आई .

अमा की कालिमा से हमने सूरज पोत डाला था
सुनहरी शाम तो आई - मिलन की रात ना आई .

कभी मौसमकी मानिंद हम बदलना सीखना पाए
घटाएं उमड़ कर छाई - मगर बरसात ना आई .

जमाने भर की बातें कह गये अपनी जुबाँ से वो
मगर हमसे महूब्ब्त की तो कोई बात ना आई .

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