Wednesday, February 18, 2015

सुहाना सफ़र अब सुहाना नहीं है .

गुज़रते गुज़रते गुज़र ही गयी जी
सुहाना सफ़र अब सुहाना नहीं है .
सड़क के किनारे खड़े होके खाना
अब मक्की के भुट्टोंमें दाना नहीं है .

बढा पेट मैं गोल सा हो गया हूँ -
था सॉलिड अब खोलसा हो गया हूँ
सधे बांस की बांसुरी था कभी मैं
मगर यार अब ढोल सा हो गया हूँ .

वो मस्ती नही वो तराना नही है -
हंसी साथ का अब बहाना नहीं है .
रंगे बाल हँसते हैं सूरत पे मेरी -
नाती कहे ये मेरे - नाना नहीं है .

थे सपने वो कबके सफ़र कर गये हैं
बच्चे हमे - 'बूढों के घर' कर गये हैं
मुश्किल से दिलको मैं बहला रहा हूँ
दिलेनादां ये अपना ज़माना नहीं है .

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