यूँ ही
Monday, September 22, 2014
रही ना जान जैसे क्या करें
सुबह जो शाम जैसी क्या करें .
मिली थी जिन्दगी खैरात में
कठिन इम्तिहान जैसी क्या करें .
बराए नाम जैसी क्या करें .
फ़क्त जिन्दा है मर सकते नहीं
बनी शमशान जैसी क्या करें .
ना फिर अंजाम जैसी क्या करें .
कठिन लगता है मरना भी बड़ा
रही ना जान जैसे क्या करें .
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