Saturday, September 3, 2016

कल कब आये - पर आज गया .

कुछ पाने को - सब खोना है
नारी जीवन का रोना है .
बाहर पाया - पर घर छुटा
मुरझाया घरका हर बूटा .

गमलों में खिलती फुलवारी
कितनी कुम्हलाई है क्यारी
टूटे सपने गम देते हैं -
घर होटल का भ्रम देते है .

आओ रात्रि विश्राम करो -
भागो सुबह और काम करो .
ना पाया - घरका राज गया .
कल कब आये - पर आज गया .

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