Tuesday, August 23, 2016

क्षणिकाएं

छेडदी हैं लहरियां सुर तानमें
मस्त भ्रमरा है अभी मधुपान में
क्या हुआ अंजाम सोचेंगे कभी
गीत मैंने गा दिया है कानमें .

आज बासंती पवन यूँ कानमें 
जाने मेरे क्या कह गयी .
रेत की दीवार फिरसे ढह गयी 
छत अधर आकाशमें यूँ रह गयी .

बहारों से क्या शिकायत
अब उन्हीं सहरों में हूँ .
चंद पल तुम संग बिताये
फिर उन्हीं पहरों में हूँ .

जीना भी बड़ा जरुरी है
जाने कैसी मजबूरी है - 
मंजिल तो नहीं मिली लेकिन
ना सफ़र थका ना पाँव थके


ना मंजिल है ना रस्ता है
सफ़र को दिल तरसता है
ये बंजारों की बस्ती में - 
सदा फिर कौन बसता है .



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