Monday, February 15, 2016

खुदा जब मेहरबां होगा .

घडी भर का फ़साना है -
जो सदियों में बयाँ होगा
जमीं ऐसी नहीं होगी -
ना ऐसा आसमां होगा .

हमारा घर वहीँ होगा -
कहीं फिर चाँद तारोंमें .
महकते गुल खिलेगे
देखना कलकी बहारों में

नहीं मेरा पता होगा -
नहीं तेरा निशाँ होगा .
ग़ज़ल ये गुनगुनाता
देखना सारा जहाँ होगा .

महूब्ब्त जिन्दा रहती है
जहाँ में मर नहीं सकती .
जिस्म चाहे जुदा करदे
रूह को कर नहीं सकती

दुआएं दे रहा सबको -
कहें सब फ़रिश्ता होगा
रहमतें तब बरसती हैं -
खुदा जब मेहरबां होगा .

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