Saturday, December 12, 2015

क्षणिकाएं

नफरतों की फसल ही जब काटनी 
प्यार के मैं बीज बोकर क्या करूँ
मैं पथिक अनजान सूनी राह का -
प्रेम में तेरा मैं होकर क्या करूँ .

रोकिये मत राह बढ़कर तुम मेरी - 
जब नहीं मेरे तो रुकके क्या करूँ
क्षितिज के उसपार जाना है मुझे -
तितलियों के पंख लेकर क्या करूँ .

किसीका इंतज़ार अब नहीं
सारी दुनिया बिसार बैठे हैं
जिसे आना है आ जाओ यार
हम तो बाहें पसार बैठे हैं .

हमसफ़र कोई ना सही -
पर सफ़र अच्छा रहा .

उम्र भर सुनते रहे कहा कुछभी नहीं 
कोशिशें की बहूत हुआ कुछभी नहीं .
सफ़र दर सफ़र में रही जिन्दगी यारो -
घुमक्कड़ी खूब रही मिला कुछभी नहीं .

ख्यालो में मस्तीकी धूप आने दो 
शील अश्लील कुछ नहीं जाने दो .

चलो ऐसे सही - 
ना वैसे सही . 
कटे ये जिन्दगी - 
चाहे जैसे सही .

हरेक बात पर ताना - 
हरेक पलका हिसाब 
ना किया इश्क मैंने -
नौकरी कर ली तेरी .

कहूं चाहे ना बतलाऊं - 
मैं लौटूं या नहीं आऊं .
वो मुझको खोज लेती है 
कहीं भी मैं चला जाऊं .

आंधियां सी जो चलती 
पौन है वो .
मुखर सा बोलता सा 
मौन है वो .
जरा सोचो बताओ 
कौन है वो ?

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