Wednesday, October 7, 2015

क्षणिकाएं

ये कैसी जिंदगी प्यारे -
रफु करकर के सब हारे .
जहाँ से सी रहे सारे -
वहीँ से फिर उधडती है .

घटा रुखसार बन छायी रहो महसूस होती हो
बारिशें लौट जाएँ तो हमें अच्छा नही लगता .

कच्चे सब मटके फूट चले 
ना सच चले तब झूठ चले .
जब हक़ नहीं तो लूट चले -
जो बोले उसको कूट चले .

ताले जाने कितने खूटे
माथे जाने कितने फूटे .
साबुत से हाड सभी टूटे .
माया से फिर भी ना छूटे .

महकते सब गुलाब नहीं होते -
शक्श सारे लाजवाब नहीं होते .
जाम आँखों से भी पीये जाते हैं .
मयकश सारे खराब नहीं होते .

मुझे अपनी तन्हाइयों से डर लगता है .
मुझे रूपहली परछाइयों से डर लगता है .
मुझे प्यार की ऊंचाइयों से डर लगता है .
मुझ प्रेम की गहराइयों से डर लगता है .
मुझे खंदकों और खाइयों से डर लगता है .

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