Friday, October 30, 2015

मंजिलों के नाम होंगे .

वक्त समझाएगा सबको
ख़ास ये सब आम होंगे .
आज डंके बज रहें हैं -
कल यही बदनाम होंगे

कल की कैसी फ़िकर है
कल कहीं हम शाम होंगे .
कौन बच पाया यहाँ पर
'काल' सबके धाम होंगे .

नाम में रखा नही कुछ
नाम तो बदनाम होंगे .
मुसाफिर बेनाम हैं हम
मंजिलों के नाम होंगे .

और भी राहें बहुत हैं
और भी आयाम होंगे .
महुब्बत को छोडिये जी
और भी तो काम होंगे .

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