Friday, March 13, 2015

शाम जायेगी कहाँ पर .

भौर क्या होनी है यारो
घटा छाई आसमां पर .
चिल्ल पौ होने लगी क्यों
दिलके छोटे से बयाँ पर .

पढ़ नहीं पाया ग़ज़ल
यूँ लफ्ज थे मेरी जुबाँ पर
शाम आई है कहाँ से -
शाम जायेगी कहाँ पर .

रातसी होने लगी और -
वो अभी हैं बदगुमाँ पर
खोजता है चाँद - तारे
मर गये जाने कहाँ पर .

बावले से भग रहें हैं -
मंजिलों के कारवाँ पर -
भक्त तो सारे यहीं पर -
आदमी लेकिन कहाँ पर .

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