Friday, December 19, 2014

फर्क केवल मांग का है .

प्यार कोरी कल्पना है
व्यक्ति में उन्मांद सा है
चाँद धुंधला सा लगे है
सूर्य लगता चाँद सा है .

तार सप्तक सी चमकती
दीप की जैसे शिखा हो .
प्रेमिका चढ़ती कला है
नशा जैसे भांग का है .

घास के अमिताभ में
जाती जयासी और रेखा .
चाहे खाली या भरी हो
फर्क केवल मांग का है .

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