Friday, October 31, 2014

भूर्ण बचता है पिता के रूप में

एक शापित बूँद मां के गर्भ में -
भांपती नजरों से अपने तोलती .
धूलमें मिटना लिखा तकदीर में -
एक बिन लिखी इबारत बोलती .


कोई अर्पण ना कोई तर्पण कहीं
विगत पितरों सा नही सम्मान है
आई जाने कब यहाँ से कब गयी
इन अनामों का ना कोई नाम है .

मात्र शक्ति की कोई सत्ता नही
वृक्ष है लेकिन कोई पत्ता नही .
सूख जाते बीज तीक्ष्ण धूप में
भूर्ण बचता है पिता के रूप में .

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