Wednesday, August 27, 2014

महूब्ब्त हो ही जाती है

कभी परवान चढ़ती है - 
कभी बलिदान होती हैं .
जिस्म जिन्दा बचे पर 
रूह भी कुर्बान होती है .

सोच कर की नही जाती 
हुई फिर सोचना कैसा .
महुब्बत खिल गयी तो 
फूल को यूँ नोचना कैसा .

अलग से गीत होते हैं
अलग अंदाज़ होते हैं .
थिरकते पाँव चलते हैं
अलग से साज़ होते हैं .

बहाना सीख जाते हैं -
ये आँखों में रुके आंसू .
लबों से कह नहीं सकते
हज़ारों राज़ होते हैं .

छुपाने से नहीं छुपती
बयाँ हो जाती नजरों से
बताएं क्या तुम्हें यारो
अनोखे नाज़ होते हैं .

मिले जो शौख नज़रें -
तो क़यामत हो ही जाती है
महूब्ब्त की नहीं जाती
महूब्ब्त हो ही जाती है .

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