Wednesday, August 20, 2014

लाल किला आज भी बोला

सुबह सुहानी सी थी कुछ - 
हवा में यूँ रवानी थी कुछ . 
अँधेरी रातों के चेहरे नहीं थे 
शहीदों के जिक्रपर पहरे नहीं थे .

जख्म तो अभी भी हैं पर - 
यूँ बहूत ज्यादा गहरे नहीं थे .
खुश होना तो चाहता हूँ यार 
पर अभी दिन सुनहरे नहीं थे .

लाल किला आज भी बोला पर
दरवाज़ा आशाओं का खोला नहीं था .
आवाज़ में खनक तो थी यार पर
मोदी पहलेसा जलता शोला नहीं था .

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