सुबह सुहानी सी थी कुछ -
हवा में यूँ रवानी थी कुछ .
अँधेरी रातों के चेहरे नहीं थे
शहीदों के जिक्रपर पहरे नहीं थे .
जख्म तो अभी भी हैं पर -
यूँ बहूत ज्यादा गहरे नहीं थे .
खुश होना तो चाहता हूँ यार
पर अभी दिन सुनहरे नहीं थे .
लाल किला आज भी बोला पर
दरवाज़ा आशाओं का खोला नहीं था .
आवाज़ में खनक तो थी यार पर
मोदी पहलेसा जलता शोला नहीं था .
हवा में यूँ रवानी थी कुछ .
अँधेरी रातों के चेहरे नहीं थे
शहीदों के जिक्रपर पहरे नहीं थे .
जख्म तो अभी भी हैं पर -
यूँ बहूत ज्यादा गहरे नहीं थे .
खुश होना तो चाहता हूँ यार
पर अभी दिन सुनहरे नहीं थे .
लाल किला आज भी बोला पर
दरवाज़ा आशाओं का खोला नहीं था .
आवाज़ में खनक तो थी यार पर
मोदी पहलेसा जलता शोला नहीं था .
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