Monday, August 4, 2014

ये फिर कैसी जवानी है .

उड़े जो फूंक मारूं तो 
गिरे गशखा पुकारूं तो .
ये कैसी पौद उग आई 
जल उठे जो निहारु तो .

सभी कहते यही है सच 
मैं कहता हूँ कहानी है .
चढ़ी इस देश को यारो -
ये फिर कैसी जवानी है .

इश्क का रोग कबतक
पालते जायेंगे ये सारे .
किसी के आँख के मोती
किसी की आँख के तारे .

ना कोई माल बिकता है
ना पूछे भाव ही छैला .
ये मोबाइल ये चैटिंग -
माल जिनमे घूमती लैला .

ये क्या जो पा लिया इसने
सही तालीम न पायी .
पिता अधीर बैठा सोचता है
अभी क्यों बेटी घर नहीं आई .

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