Thursday, May 29, 2014

ये घर तो है घरवालों का .

थोडा सा जोर लगाओ तो 
पड़े सब दरख्त खड़े होंगे . 
अबकी बरखा में यार मेरे 
ये सारे ठूंठ हरे होंगे .

मातम कैसा बरगद टुटा 
जिसकी शाखा पाताली थी . 
अंदर से जर्जर जड़ उसकी 
दीमक ने चटकर डाली थी .

ना झेल सका गिर पड़ा तभी
वो एक हवा का भी झोका
जड़ टूट चुकी थी पर जिसको
शाखों ने रखी संभाली थी .

चल गए फिरंगी घर अपने
ये चमन नहीं कंगालों का .
देसी बिरवे अब रोपेंगे -
घर  होता है घरवालों का .

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