Monday, January 6, 2014

जीवन पर विश्वास यही है

यूँ जीवन की -
सांझ हो गयी .
और कुँवारी आशाएं
सब विधवा होकर
बाँझ हो गयी .

अंतर का कोलाहल
कलरव - प्रकट हुआ
अश्रुजल तर्पण .

हुआ पराभव - 
वैभव मन का -
करना है अब -
किसको अर्पण .

सूरज था इक -
जलता फोड़ा .
चाँद गगन में -
जले निगोडा .


सावन जैसी -
प्यास नहीं पर
बूंदों ने फिर -
किसको छोड़ा .

कल फिर से
होगा आरोहण .
आज नहीं बस -
आज यही है .


मैं जीवन से -
हार सका ना
जीवन पर -
विश्वास यही है .

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