यूँ जीवन की -
सांझ हो गयी .
और कुँवारी आशाएं
सब विधवा होकर
बाँझ हो गयी .
अंतर का कोलाहल
कलरव - प्रकट हुआ
अश्रुजल तर्पण .
हुआ पराभव -
वैभव मन का -
करना है अब -
किसको अर्पण .
सूरज था इक -
जलता फोड़ा .
चाँद गगन में -
जले निगोडा .
सावन जैसी -
प्यास नहीं पर
बूंदों ने फिर -
किसको छोड़ा .
कल फिर से
होगा आरोहण .
आज नहीं बस -
आज यही है .
मैं जीवन से -
हार सका ना
जीवन पर -
विश्वास यही है .
सांझ हो गयी .
और कुँवारी आशाएं
सब विधवा होकर
बाँझ हो गयी .
अंतर का कोलाहल
कलरव - प्रकट हुआ
अश्रुजल तर्पण .
हुआ पराभव -
वैभव मन का -
करना है अब -
किसको अर्पण .
सूरज था इक -
जलता फोड़ा .
चाँद गगन में -
जले निगोडा .
सावन जैसी -
प्यास नहीं पर
बूंदों ने फिर -
किसको छोड़ा .
कल फिर से
होगा आरोहण .
आज नहीं बस -
आज यही है .
मैं जीवन से -
हार सका ना
जीवन पर -
विश्वास यही है .
No comments:
Post a Comment