Tuesday, October 15, 2013

अंतिम खोल करना चाहता हूँ .


बाज उड़ते हैं गंगन में - नीड चिड़िया के हैं बन में 

आसुरी शक्ति जुटी हैं - पाप के बेहद सृजन में .

कोटि कोटि आखं देखें बाट - आयेंगे कभी रघुनाथ

और पत्थर की अहिल्या विगलित होती है मन में .



आज इस असम धरा को गोल करना चाहता हूँ 

बाद रावण के धरा का - तोल करना चाहता हूँ .

पाप बाकी हैं धरा पर - भार से रत है ये भारत .

आज सबसे मैं ये अंतिम खोल करना चाहता हूँ .







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